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अनेकान्त/१५
लालनात् बहवो दोषाः, ताडनात् बहवो गुणाः।
तस्मात् पुत्रं च शिष्यं च, ताडयेद् न तु लालयेत ।। यह नीति है। इसके अनुसार पुत्र तथा शिष्यों को लालित करते या अधिक लाड़-प्यार करते हैं तो हम ही उसे दोषों का भण्डार बना रहे हैं। यदि उन्हें ताड़ते हैं तो अवगण दूर होंगे तथा वे गुणी बनेंगे।
हमने जो दिशा ली है, उसी दिशा में जिस ओर महावीर भगवान के कदम उठे हैं, उसी ओर हम अपने कदम बढ़ाना चाहेंगे। यही बात दूसरों के लिये भी संकल्प पूर्वक कहना चाहते हैं। आप यदि अपने को महावीर भगवान की संतान या उनका समर्थक मानते हो, तो ध्यान रखना अभी इस गाड़ी को बहुत आगे बढ़ाना है। यदि आप आगे नहीं बढ़ाते हैं तो आपकी आने वाली पीढ़ी कहेगी कि हमारे बाप-दादाओं ने हमारे लिये धर्म-कर्म नहीं सिखाया। यदि सिखाया है, तो भट्टारकों को ही मुनि मानो, यह बात गलत हो जायेगी। आज हमारे सामने जो युवक गुरुकुल मढ़ियाजी (जबलपुर) में पढ़कर के गये हैं, हमसे आशीर्वाद प्राप्त किया है, उन चारों को भट्टारक बनाया गया है। हमें इस बात का खेद है कि हमने भट्टारक बनाने के लिये आशीर्वाद नहीं दिया था। समाज का पैसा लगाकर, समय निकालकर प्रोत्साहित करके उन्हें बनाया। आज उनको भट्टारक बनाकर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। यह सही परंपरा नहीं है। विद्वानों को भी सोचना चाहिये कि भट्टारक बनाने के लिये इन लोगों को नहीं पढ़ाया था। जैन-धर्म की प्रभावना के लिये पढ़ाया गया है। यह बात इसलिये आज मैं कह रहा हूँ कि आज चातुर्मास का समापन हो चुका है। अव हमारा कहीं भी विहार हो सकता है। आप इन्दौर में ही रहेंगे और हमें इन्दौर में रहना है ही नहीं। परिग्रह के साथ जो धर्म की प्रभावना करना चाहते हैं, वे घर में रह करके करें, किंतु हाथ में पिच्छी लेकर और परिग्रह रखकर के चलें, यह उसकी (पिच्छी की) शोभा नहीं है। मयूर-पिच्छी की कीमत, मूल्य, गरिमा बनाये रखने के लिये मैं आप लोगों से कह रहा हूँ।
प्रेषक :
निर्मलकुमार पाटोदी, 10, यशवंत कॉलोनी, इन्दौर-(म.प्र.) 452003