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________________ अनेकान्त/१४ के लिये आवश्यकता होती है। परन्तु यह सब पिच्छी के साथ न करिये। कोई आशीर्वाद, निर्देशन माँगता हो तो आप उन्हें उपदेश दे सकते हैं किंतु एक स्थान पर बैठकर मठाधीश बनना जैन-धर्म के लिये उचित नहीं है। जैन समाज प्राचीनकाल से तन, मन एवं धन से क्षेत्र आदि की रक्षा करती आयी है। यदि ऐसा नहीं करते तो यह श्रेय आप पर ही आवेगा की आपने सुरक्षा की अथवा बाधा पैदा की ? प्रत्येक व्यक्ति को इसका समर्थन करने पर श्रेय आवेगा। लॉ पढ़ने से वह वकील बन सकता है। हाईकोर्ट आदि में वकालत कर सकता है परन्तु वह लॉ की किताब नहीं लिख सकता। जो किताबें लिखी हैं, उन्हें ही पढ़कर वकालत कर सकता है। किंतु उनमें संशोधन नहीं कर सकता। जज ही कर सकता है। वह जज वकील से कहते हैं कि तुम्हें मात्र वकालत करनी है, जजमेंट नहीं देना। आज तो हर व्यक्ति अपनी परंपरा बनाने में, ग्रंथ लिखने में लगा हुआ है। कुंदकुंद की बात करते, वह तो पर है। कुंदकुंद आचार्य ने तीन ही लिंग कहे हैं, उन्हें सुरक्षित रखना तो धर्म की रक्षा करना है, नहीं तो आपके कारण धर्म सुरक्षित नहीं रह पायेगा। इस पर समाज के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति, मूर्धन्य विद्वान तथा श्रीमान् मिलकर अवश्य ही विचार करेंगे। इस संबंध में प्रमाद करते हैं, तो मैं समझूगा ये कोरी बातें हैं। बात को मूर्त रूप देना नहीं चाहते हैं। अब मैं इन बातों को सुनना नहीं चाहता। ये कुछ कहते नहीं, तो सन्देह का चिन्ह बन जाता हैं अब तो कई लोग मुझ पर संदेह करने लगे हैं कि महाराज ! बताओ आप किसके समर्थक हो ? इसलिये मैं कहना चाहूँगा कि, मेरा समर्थन तो केवल देव, शास्त्र, गुरु के लिये ही रहेगा। मुझे कोई श्रीमान् माने या ना माने, कोई मतलब नहीं। जिनवाणी की सेवा करूँगा तथा जो प्रतिज्ञा आचार्य गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज से ली है, उस प्रतिज्ञा को जब तक इस शरीर में, घट में प्राण रहेंगे तब तक वीर प्रभु को याद करते हुए उसका निर्वाह करने के लिये मैं संकल्पित हूँ। भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि मेरा यह संकल्प जब तक प्राण रहे, जब तक जीवित रहूँ, तब तक इस भोली जनता, जैन समाज को बता सकूँ। जैन-धर्म में विकार सहनीय नहीं है। जिस प्रकार शरीर में रोग सहनीय नहीं होता, उसी प्रकार धर्म-मार्ग में दूषण इस आत्मा को सहन नहीं होता।
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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