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________________ अनेकान्त/११ है तो उसका मुख बंद कर दिया जाता है। हमें भी ऐसा कह दें कि आप इसके बारे में बोलिये नहीं। पर हम अवश्य बोलेंगे। आपको इस बारे में निर्णय करना होगा। यदि निर्णय नहीं किया जाता है तो हम समाज के सामने आव्हान कर सकते हैं क्योंकि इस प्रकार की परम्परा की कोई आवश्यकता नहीं है ? कुछ समय के लिये क्षेत्रों इत्यादि के लिये व्यवस्था कर दी गई है। लेकिन पिच्छी के साथ कोई ट्रस्टी बन सकता है क्या ? क्या पिच्छी के साथ ताला-कुंजी ले सकता है ? क्या पिच्छी के साथ बैंक बेलेंस रख सकता है ? क्या पिच्छी के साथ कोई खेती-बाड़ी कर सकता है ? आप लोगों को श्रमण-परंपरा के प्रति क्या कोई आदर नहीं है ? आप लोगों को स्वाभिमान नहीं है ? क्या विद्वान् इस बात को नहीं जानते ? इस बात को उठाने से दबाया क्यों जाता है ? (इनडायरेक्ट) अप्रत्यक्ष क्यों जवाब दिया जाता है ? जिस समय हमारे पास भट्टारकजी (भट्टारक चारुकीर्ति, श्रवणबेलगोला) आये थे, यह बात मढ़ियाजी (जबलपुर) की है, और उनके सम्मान करने की बात आ गयी। हमारे सानिध्य की बात करके भट्टारकजी के सम्मान की बात करते हैं तो मैं भट्टारक की व्याख्या करके रहूँगा और हमने भट्टारक की व्याख्या की है। अभी तक इस बात को आठ-दस साल हो गये, किसी भट्टारक ने गौर नहीं किया। क्योंकि उसके पीछे समर्थन है। आप समर्थन करना चाहते हैं तो करिये, लेकिन मार्ग को दूषित न करिये। अब हम इस बात को सहन नहीं कर सकते। कई व्यक्तियों ने इनडायरेक्ट बात की, जो गलत बात है। गृहस्थ की अलग और श्रमण की परंपरा अलग होती है। गृहस्थ की एक मर्यादा होती है। क्षेत्रों का रख-रखाव, उन्नति, सुरक्षा आदि आवश्यक होते हैं। इस बात को तो हम मान्य करते हैं। ऐसा आदर्श कार्य कोई भट्टारक करे तो उसे गृहस्थाचार्य बोला जा सकता है। उन्हें एक उपाधि दीजिये। उनके हाथ में पिच्छी अवैध है। बल्कि यूँ कहिये दिगम्बर समाज के लिये इसमें बहुत नीचा देखना पड़ता है। हम उसको कौन-सा पद मानेंगे ? उनका पूरा का पूरा कार्य क्षुल्लकवत् चल रहा है। यह ठीक नहीं है। आप आगम को आदर दे दो। आपको सहर्ष स्वीकार करना चाहिये। भट्टारक लोग पढ़े लिखे हैं। कुछ डबल एम. ए. हैं। सब कुछ जानते हैं। वर्तमान में पाँच-पाँच, छः-छः भट्टारकों को दीक्षा दे दी गई है और
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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