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________________ अनन्त जिज्ञासाओं के पुंज जुगलकिशोर मुख्तार -नीरज जैन बीसवीं सदी का पहला चरण एक दृष्टि से, जैन संस्कृति के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण माना जायेगा कि उसी कालखण्ड में जैन इतिहास का नाम लेने वाले विद्वानों का आविर्भाव हुआ और इसी अवधि में जैन साहित्य के पुनरुद्वार का कार्य प्रारम्भ हुआ। जैन आगम और साहित्य को यंत्रों द्वारा मुद्रित करके प्रसारित करने की पद्धति भी लगभग उसी समयावधि में प्रारम्भ हुई, यद्यपि इसके प्रयास कुछ पूर्व ही प्रारम्भ हो चुके थे। सत्तर-पचहत्तर साल पहले का वह युग सामाजिक परिस्थितियों के हिसाब से कुछ गौरवपूर्ण या महिमा-मण्डित युग कहलाने के योग्य नहीं कहा जा सकता। आमतौर पर समाज में अशिक्षा का अंधकार फैल रहा था और वह बरी तरह रूढ़ियों के शिकंजों में जकड़ा हुआ समाज था। उस समाज में नारी की स्थिति तो अत्यंत दयनीय थी। कन्या को पाठशाला भेजना छठवां पाप माना जाता था और “कन्या-विक्रय” की बलिवेदी पर दस-बारह साल की मासूम लड़कियाँ, पचपन-साठ साल तक के बूढ़े लोगों के साथ, विवाह के माध्यम से आजीवन-अभिशाप भोगने के लिये विवश थीं। ऐसी दयनीय परिस्थितियों के बीच, शताब्दी के उसी प्रथम चरण में, जैन समाज, संस्कृति और साहित्य के पुनरुद्वार की पृष्ठ-भूमि तैयार हुई और कुछ ऐसे उद्वारकों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्होंने अपना सारा जीवन होमकर अपनी-अपनी निश्चित दिशाओं में, और निश्चित क्षेत्रों में, ऐसे महत्वपूर्ण कार्य किये जो आज शताब्दी के अंतिम वर्ष में भी, मील के पत्थर की तरह हमारे मार्ग-दर्शक हैं और प्रेरणा-स्रोत भी बने हुए हैं। ऐसे महापुरुषों में पुण्यश्लोक की तरह प्रतिष्ठित एक नाम था हमारे परम आदरणीय श्री
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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