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वर्ष ५२
किरण ४
अनेकान्त
वीर सेवा मंदिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ अक्टूबर-दिसम्बर
वी.नि.सं. २५२६ वि.सं. २०५६
१६६६
कोई न हमारा
हम न किसी के कोई न हमारा, झूठा है जग का व्योहारा । धन संबंधी सब परिवारा, सो तन हमने जाना न्यारा ।। 1।।
पुन्य उदय सुख का बढ़वारा, पाप उदय दुख होत अपारा। पाप पुन्य दोऊ संसारा, मैं सब देखन जानन हारा ।। 2 ।।
मैं तिहुँजग तिहुँकाल अकेला, पर संबंध हुआ बहु मैला । थिति पूरी कर खिर-खिर जाई, मेरे हरष शोक कछु नाहीं ।। 3 ।।
राग-भाव ते सज्जन मानै, द्वेष भाव ते दुर्जन माने। राग-दोष दोऊ मम नाहीं, 'द्यानत' मैं चेतन पद माहीं ।। 4 11