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वस्तुस्थिति तो यह है कि आजकल आगम से लेकर आचार तक सब कुछ बदलने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। यदि ठोस आगमनिष्ठ विद्वानों के अभाव में पिच्छि-कमण्डलु का अर्थ गणधर मान्य हो जाय तब कोई क्या कर सकता है? हमारी परम्परा तो गणधरानुसारिणी है। सुना है अनेक विद्वानों ने सिद्धशिला के अधोमुख छत्राकार सदृश होने में अपनी सम्मत्तियाँ प्रकट की हैं।
हमें जिनेन्द्रवर्णी कोष और जयसेन प्रतिष्ठा पाठ आदि के उद्धरण भी प्रस्तुत किए गए हैं। जबकि उक्त प्रतिष्ठा पाठ में दीक्षाविधि का प्रसंग है और जिनेन्द्रवर्णी कोष के अनुसार भी पृ. : 334-335 में उत्तान का अर्थ ऊँधे छपा है, जबकि उसी के तीनलोक के नक्शे (पृ. 455) पर शिला का आकार ऊर्ध्वमुखी चन्द्राकार सदृश ही बनाया गया है। जो ऊर्ध्वमुख छत्र-साम्य है। संक्षेप में 'उत्तान' शब्द का अर्थ इस प्रकार मिलता हैउत्तान - ऊर्ध्वमुखशयिते, ऊर्ध्वमुखे च – अभिधानराजेन्द्र कोष
ऊर्ध्वमुख – पाइयसद्दमहण्णब ऊपर मुख करके सोया हुआ – विश्वलोचन कोष तद्विपर्यये - उथला - गहरा नहीं - अमरकोष
पीठ के बल लेटा हुआ – संस्कृत हिन्दी कोष इस प्रकार सिद्धशिला का आकार चन्द्राकार या ऊर्ध्वमुख छत्रसम ही मान्य ठहरता है। दोनों के आकार में कोई भेद नहीं है। कथन में लोक प्रसिद्धि के कारण चन्द्राकार कहा जाने लगा है। शास्त्रोल्लेख के अनुसार यह ऊर्ध्वमुख-छत्र जैसा ही है।
-पद्मचन्द्र शास्त्री