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________________ अनेकान्त / 87 तक पहुंचाई। उनकी शक्ति में न्याय पाने के लिए उन्होंने कुछ उठा न रखा; परन्तु जैनी तो असंगठित हैं-आपस में लड़ने के लिए मर्द हैं! इस पाप का दण्ड तो मिलना ही चाहिए, किन्तु बैरिस्टर सा० अपने कर्त्तव्य पालन में कभी पीछे नहीं रहे ? इसीलिए हम उन्हें धर्मरक्षक कहें तो अनुचित नहीं है। मुनि-रक्षक – सर्वज्ञदेव, निर्ग्रन्थगुरु और जिनधर्म के वह अटल श्रद्धानी थे। जब मूढ़ जनता ने दिगम्बर मुनियों के नग्न वेषपर अंगुली उठाई एवं सरदार पटेल और महात्मा गांधी ने साधुत्व के लिए नग्नता पर अशिष्टता का लाञ्छन लगायापरिणामस्वरूप सरकार की ओर से भी कुछ कड़ाई हुई-कई स्थानों पर दिगम्बर मुनि - महाराजों के स्वतन्त्र बिहार में बाधाएं उपस्थित हुई- -उस संकट समय में बैरिस्टर सा० आगे आये । वह दिल्ली में रहे और प्रयत्न किया कि दि० मुनि-विहार पर वैधानिक स्वाधीनता प्राप्त कर ली जावे। उस समय बैरिस्टर सा० ने प्रेस और प्लेटफार्म से साधुत्व के लिए प्रत्येक मत में दिगम्बरत्व को आवश्यक सिद्ध कर दिखाया था । उन्होंने मुझे दिल्ली बुला भेजा - मैंने देखा, वह दिगम्बरत्व की सार्वभौमिकता सिद्ध करने के लिए तन्मय हो रहे थे। उनकी साधुमूर्ति विदुषी बहन मीरादेवी उनके स्वास्थ्य की चिन्ता रखती थीं; परन्तु बैरिस्टर सा० को केवल एक धुन-मुनिरक्षा की थी । उन्होंने मुनिचर्या के कतिपय ऐतिहासिक प्रसंगों की चर्चा मुझसे की और बोले, "हमारे यहां सच्चे कार्य करने वाले की कदर नहीं । जो उपयोगी सामग्री और ऐतिहासिक प्रमाण आपकी पुस्तक में हैं, वह श्री घोषाल की पुस्तक में नहीं दिखते। जैनी रुपया बरबाद करना जानते हैं-ठोस काम नहीं देखते।” उपरान्त वह मुझे बराबर जैनेतर शास्त्रों के उद्धरण प्रकाशनार्थ भेजते रहे- शारह आमसे हर मज़हब के जुलूस निकालने की कानूनी नज़ीरें भी उन्होंने भेजीं, जो 'वीर' में बराबर छपती रहीं । उसी समय महात्मा गांधीजी को भी उन्होंने इस प्रसंग में कई पत्र लिखे । एक पत्र में उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि "I don't know, if I shall ever succeed in this life in gaining my ambition, but it is my ambition one day to become a Digambara saint. I wonder, what you will do to me in the Swarajya, if it shall come by that time?" इससे स्पष्ट है कि बैरिस्टर साहब दिगम्बरत्व को निर्वाण पाने के लिए कितना आवश्यक मानते थे। उनकी यह कामना थी कि वह भी कभी दिगम्बर मुनि हों । कहना न होगा, महात्मा गांधी ने अन्ततः इस विषय में अपना स्पष्टीकरण प्रकाशित कर दिया था। बैरिस्टर साहब मुनिभक्त ही नहीं, मुनिधर्म के रक्षक भी थे । -
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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