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अनेकान्त/36
गवाह पेश होते रहे, जिनमें मुख्यतया लाला देवीसहाय जी फीरोजपुर, सेठ हरनरायण जी भागलपुर, - गहब जुगमन्धर दास नजीबाबाद, सर सेठ हुकुमचन्द इन्दौर, रायबहादुर नांदमल अजमेर, रायसाहेब फूलचन्दराय लखनऊ, पंडित पन्नालाल न्याय दिवाकर, पंडित जयदेव जी, पंडित गजाधर लाल जी थे।
रायसाहेब फूलचन्द राय का बयान चालू था कि यकायक 17 जनवरी को सबजज साहेब की हज़ारीबाग से रांची की बदली का हुक्म आ गया। मुकद्दमा चलना बन्द हो गया फिर मुकद्दमा भी हज़ारीबाग से रांची को भेज दिया गया। जहां 25 मार्च 1924 से रायसाहेब फूलचन्द राय की गवाही चलने लगी। 24 अप्रैल 1924 को बाबू महाराजबहादुर सिंह प्रतिवादी नं. 1 के गवाहों के बयान खत्म हुये।
उभयपक्ष की बहस 18 दिन तक चली और 26 मई 1924 को हमारा दावा खर्चे समेत डिगरी हुआ। निर्णायक श्री फणीन्द्र लाल सेन संस्कृतज्ञ सबजज महोदय थे। उस निर्णय का अपील पटना हाईकोर्ट में श्री Ross और श्री Wort दो अंग्रेज जजों के सामने पेश हुआ। श्वेताम्बरी संघ की तरफ से श्री भूलाभाई देसाई ने बहस की थी। चरण-चिन्ह के विषय में हमारी जीत हुई।
मैंने 7 वर्ष तक 1923 से 1930 तक तीर्थक्षेत्र कमेटी का काम किया। 46000 मेरे नाम से तीर्थक्षेत्र कमेटी की बही में दानखाते जमा हैं। कर्तव्य पालक : बैरिस्टर चम्पतराय जैन
__ बैरिस्टर चम्पतराय जैन अपने धर्म के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। बाबू कामताप्रसाद जैन ने उनके विषय में जो उद्गार व्यक्त किए हैं उनमें से कुछ यहां उद्धृत किए जा रहे हैं।
__ धर्म-रक्षक - धर्म स्वतः पंगु है-वह धर्मात्माओं का आश्रय चाहता है-धर्मात्माओं के सहारे वह दुनिया में चमकता है। बैरिस्टर सा० स्वयं धर्माश्रय थे। यदि कोई धर्म पर आक्रमण करता तो वह उसका प्रामाणिक उत्तर दिये बिना चुप नहीं होते थे। उन्हें ज्ञात हुआ, बयाना में जैनरथ रुका हुआ है-वह फौरन वहां गये और स्थिति का अध्ययन करके जैनरथ निकलवाने में सतत उद्योगी बने। उन्होंने सुना कि कुड़ची के जैनियों पर गुण्डे अत्याचार कर रहे हैं-गुण्डों ने पूज्य प्रतिमाओं के शत खण्ड कर दिये हैं! कुड़ची भी वह गये और अपने भाइयों को ढाढ़स बंधाया। बोले, “घबराओ नहीं; परिषद् आपके साथ है!" जब भारतीय
अधिकारियों ने हमारी बात सुनी-अनसुनी की तो बैरिस्टर सा० ने विलायत जाकर मि० फ्रेनर ब्रॉकवे M.P. द्वारा इस अत्याचार की कहानी भारतमंत्री और पाामेंट