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________________ अनेकान्त/35 नहीं प्राप्त हुई, सम्मेदाचल तीर्थराज के श्वेताम्बराम्नायी प्रबन्धकों ने यह प्रयत्न किया कि श्री कुंथनाथ की टौंक के पास जहां से मधुवन के रास्ते से तीर्थराज की यात्रा प्रारम्भ होती है, एक बड़ा फाटक खड़ा करें, जिसमें यात्रियों को यात्रा के लिये श्वेताम्बर समाज की दया-दृष्टि पर निर्भर रहना पड़े, उस फाटक के पास तलवार बंदूक आदि हथियार बन्द सिपाही भी रखे जावें। तीर्थराज पर बिजली गिरने से पूज्य चरणालय जिनको "टौंक” कहा जाता है टूट जाती हैं और नूतन चरण स्थापना की आवश्यकता होती है। ऐसे नवीन चरण श्वेताम्बर समाज के प्रबन्ध से इस रूप में स्थापित किये गये थे जिस रूप में वह दिगम्बर आम्नायी उपासकों द्वारा पूज्य नहीं थे। दिगम्बर आम्नाय के अनुसार “चरण चिन्ह" अर्थात् चरणों के तलवों की छाप पूज्य है, किन्तु चरण युगल की आकृति अर्थात् नाखूनदार अंगूठा अंगुलियों की और पंजे की आकृति अपूज्य है। अतः फाटक और सिपाहियों के निवास स्थान बनाने को रोकने और अपूज्य चरणों को हटाकर पूजा योग्य चरण चिन्ह स्थापन किये जाने के वास्ते दिगम्बर समाज की ओर से हज़ारीबाग के सबजज की कचहरी में 4 अक्टूबर 1920 को नालिश दाखिल की गई। इस मुकद्दमें में (1) सर सेठ हुकुमचन्द, इन्दौर (2) श्री जम्बूप्रसाद, सहारनपुर (3) श्री देवी सहाय, फ़ीरोजपुर (4) सेठ हीराचन्द, शोलापुर (5) सेठ सुखानन्द, बम्बई (6) सेठ दयाचन्द, कलकत्ता (7) सेठ मानिकचन्द, झालरापाटन (8) सेठ टेकचन्द, अजमेर (9) सेठ हरसुखदास, हज़ारीबाग 9 मुद्दई थे। (1) बाबू महाराज बहादुर सिंह, (2) नगरसेठ कस्तूरभाई, अहमदाबाद, (3) बाबू रायकुमारसिंह, कलकत्ता, (4) सेठ मोतीचन्द, कलकत्ता श्वेताम्बरी जैनसमाज के प्रतिनिधिरूप मुद्दालेह बनाये गये थे। नालिश आर्डर 8 रूल 1 के अनुसार की गई थी। दिसम्बर 1923 के प्रारम्भ में उस मुकद्दमें में गवाह पेश होने का अवसर आया। सेठ मानिकचन्द जी का स्वर्गवास हो चुका था। कमेटी की रोकड़ में खर्च के वास्ते पर्याप्त धन नहीं था। श्री बैरिस्टर चम्पत राय जी हरदोई जिले में ख्यातिप्राप्त फौजदारी के विशेषज्ञ वकील थे। उन्होंने तीर्थराज की सेवा करने और बिना किसी फीस के मुकद्दमे में काम करने के अभिप्राय से बैरिस्टरी का व्यवसाय त्याग दिया, जिससे उनको कई हज़ार रुपये की मासिक आमदनी थीं श्री चम्पतराय के लिखने पर मैंने भी तीर्थराज की सेवा बिना किसी फ़ीस करना स्वीकार कर लिया। हम दोनों 2 दिसम्बर 1923 को लखनऊ से चलकर 3 दिसम्बर को हज़ारीबाग पहुंच गये। 4 दिसम्बर 1923 से 16 जनवरी तक हमारी तरफ़ के
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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