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________________ अनेकान्त / 34 सब टौंको में प्रतिवादी दिगम्बरी संघ का प्रक्षाल - पूजा का अधिकार निश्चित पाया गया। दिगम्बरी समाज के यात्री प्रातः जाते हैं, और सूर्यास्त से पहले वापस लौट आते हैं। वह पर्वतराज पर अन्न-जल नहीं लेते। गांधीजी पंच बने 1917 का कांग्रेस अधिवेशन देखने के लिए मैं कलकत्ता गया । एक दिन महात्मा भगवान दीन जी के साथ मैं ब्रह्ममुहूर्त में महात्मा गांधी के निवास स्थान पर गया। महात्मा जी से निवेदन किया कि वह दिगम्बर श्वेताम्बर समाज के पारस्परिक विरोध का, जो कई वरस से चल रहा है, जिसमें कई लाख रुपया उभय समाज का नष्ट हो चुका है और पारस्परिक मनोमालिन्य बढ़ता जा रहा है, अन्त करा दें । महात्मा गांधी ने हमारी प्रार्थना ध्यान से सुनी, और मामले का निर्णय करना स्वीकार किया और कहा कि चाहे जितना समय लगे, मैं इस झगड़े का निबटारा कर दूंगा किन्तु उभय पक्ष इकरार नामा रजिस्टरी कराके मुझे दे दें कि मेरा निर्णय उभयपक्ष को निःसंकोच स्वीकार और माननीय होगा । महात्मा भगवान दीन जी और मै कितनी ही बार रायबहादुर बद्रीदास जी की सेवा में उनके निवासस्थान पर गए और उनसे प्रार्थना की कि वह श्वेताम्बर समाज की ओर से ऐसे इकरार नामे की रजिस्टरी करा दें । रायबहादुर बद्रीदास जी को आश्वासन दिया कि दिगम्बरीय समाज की ओर से रजिस्टरी करा देने की ज़िम्मेदारी हम अपने ऊपर लेते हैं। लेकिन रायबहादुर जी ने बात को टाल दी । यही कहते रहे कि समाज उनके कहने में नहीं है । कुछ न होना था, कुछ न हुआ। सब प्रयत्न व्यर्थ हुआ । हज़ारीबाग सबजज के निर्णय की अपील हाईकोर्ट पटना में उभयपक्ष ने किया। दोनों अपील 14 अप्रैल 1921 को खारिज हुए। उभयपक्ष ने फिर आगे दूसरी अपील लंदन में प्रीवी काउन्सिल में की। वह दोनों अपील भी 16 सितम्बर 1925 को खारिज हुए। परिणामतः जैन समाज के प्रचुर द्रव्य का अपव्यय और पारस्परिक मनोमालिन्य की वृद्धि हुई। वकील और पैरोकार - मुखतार अमीर हो गए। इङ्कशन केस " पूजा केस" के निर्णय के पश्चात् जिसमें श्वेताम्बर समाज को यथेष्ट सफलता
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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