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________________ अनेकान्त/38 रक्षा हेतु अपना जीवन ही समर्पित कर दिया। “अज्ञात जीवन” पुस्तक में उनके परिश्रम और त्याग की भावना के प्रति हम नतमस्तक हैं। तीर्थक्षेत्र कमेटी दिगम्बर जैन समाज के वास्तविक दानवीर श्री सेठ माणिकचन्द हीराचन्द, Justice of the Peace “शान्ति रक्षक" पदवी से विभूषित, जैन जाति-उद्धारक, जैन धर्म सेवक, जैन धर्म प्रभावना संचारक, धर्मवीर ने श्वेताम्बर जैन समाज के अत्याचार तथा जैन तीर्थ क्षेत्रों पर अनधिकृत आक्रमण के कारण एक कमेटी की स्थापना करना आवश्यक समझा। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी का कार्यालय नियमानुसार बम्बई की हीराबाग धर्मशाला में खोला गया। सेठजी ने महामंत्री पद का काम अपने ऊपर लिया। तीर्थक्षेत्र कमेटी की स्थापना के समय से सेठ माणिकचन्द जी नित्य प्रति हीराबाग धर्मशाला के कार्यालय में 3-4-5 घंटे कार्य की आवश्यकतानुसार स्वतः पधारते थे, सब पत्र व्यवहार करते और कामकाज देखते थे। पूजा केस 7 मार्च 1912 को बाबू महाराज बहादुरसिंह ने श्वेताम्बर जैन संघ की ओर से, सेठ हुकुमचन्द तथा 18 अन्य भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समाज के प्रमुख सदस्यों के विरुद्ध, आर्डर 8 रूल 1 के अनुसार, सबजज हज़ारीबाग की कचहरी में नालिश पेश की। मुद्दई का दावा था कि श्री सम्मेदशिखर जी निर्वाण-क्षेत्र स्थित टोंक, मन्दिर, धर्मशाला सब श्वेताम्बर संघ द्वारा निर्मित हुई हैं। दिगम्बराम्नायी जैनियों को श्वेताम्बर आम्नाय के विरुद्ध और श्वेताम्बर संघ को अनुमति बिना प्रक्षाल-पूजा आदि करने का अधिकार नहीं है; न वह धर्मशाला में ठहर सकते हैं। यह मुकद्दमा साढ़े चार बरस से ऊपर चला। उभय पक्ष का कई लाख रुपया व्यर्थ खर्च हुआ। अन्तिम निर्णय सब-जजी से 31 अक्टूबर 1916 को हुआ। इस निर्णय के अनुसार श्री ऋषभदेव, वासुपूज्य, नेमिनाथ, महावीर स्वामी तीर्थंकरों का निर्वाण श्री कैलाश (हिमालय), चंपापुर (भागलपुर), गिरनार (गुजरात), पावापुर (पटना) से हुआ है। इन चार तीर्थंकरों की टौंको के अतिरिक्त अन्य
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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