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अनेकान्त/27
योग्य है। यह व्यवहारिक धरातल पर भी उपयोगी है। वास्तव में जिस अनेकान्त को व्यापक बनाना है जिसके आधार पर हमें समस्याओं का समाधान खोजना है वह यही है। उदाहरण के तौर पर एक कहता है कि अग्नि उण्ण है और एक कहता है कि अग्लि लाल है तब तीसरा अनेकान्त वाला व्यक्ति कहता है-इसमें लड़ने की क्या बात है। तुम दोनों ही सही हो। अग्नि का स्वभाव एक ही समय में उष्णत्व भी है और लालत्व भी है। यहां सम्यक् अनेकान्त होता है। यह दार्शनिक और व्यवहारिक दोनों ही स्थानों पर उपयोगी बनता है। मगर अनेकान्त को समझने के लिए दृष्टि चाहिए। मनगढ़ंत, बिना जाने समझे, बिना विचार के इस विषय पर चाहे जैसा बोलना और फिर तर्कों का सामना करना-अनेकान्त की छवि को भी धूमिल करता है और वक्ता की छवि को भी। अनेकान्ताभास -
अनेकान्त पर स्थूल ज्ञान रखने वाले कई विद्वानों से यह अक्सर सुना जाता है कि जैनदर्शन का अनेकान्त सभी धर्मो का मिश्रण है। ये सबको अच्छा बतलाया है और न जाने क्या-क्या? किन्तु किस चीज़ को वह अच्छा बतलाया है? क्या उस चीज को भी जो गलत है? नहीं। अनेकान्त की दृष्टि सत्याग्रह की दृष्टि है वह वस्तु के उन्हीं धर्मो की मुख्य गौण रूप से चर्चा करता है जो वस्तु में निहित है। उसमें विद्यमान है। लोग अतिरेक में यह भी कह जाते हैं कि अनेकान्त तो समुद्र के समान है जहां सभी धर्मों, दर्शनों की नदियां आकर मिल जाती हैं। किन्तु गंभीरता से विचार किया जाय तो क्या यह सही लगता है? उपादेयता की दृष्टि से दृष्टान्त में ही देखें तो क्या समुद्र का खारा पानी पीने योग्य होता है? क्या अनेकान्त वास्तव में ऐसा समुद्र हो सकता है जिसका जल ग्रहण करने योग्य न हो। नहीं कदापि नहीं। ऐसा स्वरूप तो मिथ्या अनेकान्त का ही हो सकता हैं अनेकान्त कोई समुद्र नहीं है जहां सारी नदियां आकर मिलती हैं। अनेकान्त हिमालय के समान है जहां से सारी नदियां प्रस्फुटित होती हैं-और जन जन को
आस्था का केन्द्र बनाती हैं, लोगों को तृप्त करती है। संक्षेप में समझें समुद्र मिथ्या अनेकान्त का दृष्टान्त है और हिमालय सम्यक् अनेकान्त का दृष्टान्त है।
हमें इस तथ्य को गंभीरता से समझना होगा कि क्या सौ झूठों को