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________________ अनेकान्त/28 मिलाकर कभी एक सत्य बन सकता है? किन्तु अनेकान्तभासी ऐसा करने से भी नहीं चूकते। हम अनेकान्ताभास को समझने लगेंगे तो हमारे ख्याल में अनेकान्त सहज ही आ जाएगा। - एक किसान की लड़की यौवन की दलहीज को पार करते हुए पैंतीस वर्ष की हो गयी। उसके लिए लगभग चालीस वर्ष का वर खोजना मुश्किल हो गया। किसी ने सलाह दी यदि चालीस वर्ष का वर न मिलता हो तो बीस-बीस वर्ष के दो लड़कों से विवाह कर दो। स्थिति हास्यास्पद बन गई, क्या यह समाधान है? यद्यपि दोनों बीस-बीस वर्ष के युवक अपनी-अपनी अपेक्षा ठीक हैं किन्तु क्या वे चालीस वर्षीय व्यक्ति का स्थान ले सकते हैं? यहां समस्या उत्पन्न हो जाती है। अतः हम इन उदाहरणों से समझें कि क्या हम अनेकान्त पर बोलते समय ऐसी स्थितियां तो उत्पन्न नहीं कर रहे। एक बालक पुस्तक विक्रेता की दुकान पर जाकर आठवीं की गणित की पुस्तक मांगता है। विक्रेता कहता है-यह पुस्तक तो नहीं है ऐसा करो तुम एक पांचवी की पुस्तक ले जाओ और एक तीसरी की पुस्तक ले जाओ-तुम्हारा आठवीं का काम चल जायेगा। इसे ही अनेकान्ताभास कहते हैं। क्या उस बालक का समाधान होगा? इसी उदाहरण से हम अनेकान्त को समझें। बालक उसी विक्रेता से एक अन्य पुस्तक बारह रुपये में खरीदता है और बीस का नोट देता है। विक्रेता क्रमशः पांच का, दो का तथा एक का नोट आठ रुपये के लिए वापस करता है। बालक का काम हो जाता है। यहां सम्यक् अनेकान्त है, यह उपादेय है। ___ हम विश्व की हर समस्या का समाधान अनेकान्त में खोज सकते हैं किन्तु अनेकान्त के स्वरूप को निखारकर, उसके स्वरूप को व्यर्थ ही लच्छेदार भाषणबाजी के लिए बिगाड़कर समस्याओं का समाधान उसमें नहीं खोज सकते। अनेकान्त की विश्व को आवश्यकता है। मगर अनेकान्त के साथ एक परेशानी है कि ये एकान्तदृष्टि का मानव अनेकान्त के स्वरूप को भी एकान्त में ढकेल देता है। अनेकान्त कहता है-मुझे समझने के लिए पुरुषार्थ चाहिए, धैर्य चाहिए, सहिष्णुता साहिए, अनन्त दृष्टियां चाहिए। “अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपायें कैसे? हम आपकी नज़रों के मुताबिक नज़र आयें कैसे?
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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