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________________ अनेकान्त/५ 'ण च दिव्वज्झुणी अणक्खरप्पिया चेव अट्ठारस सत्तसयभास कुभासप्पिय' -धवला ६/४/४४ पृ १३६ 'तववागमृतं श्रीमत्सर्वभाषा स्वभावकम्। प्रणीत्यमृतं यद्वत् प्राणिनो व्यापि संसदि।। -बृहत्स्वयम्भू स्तोत्र ६७, अरहनाथस्तुति परम्परित पूर्वाचार्यो के उक्त कथनो के आधार पर हम दावे के साथ, दिगम्बर-आगमो की भाषा को अर्धमागधी ही मानते है और जो लोग उक्त कथनो के आधार को झुठलाकर अर्धमागधी से मुँह मोडकर आगमभाषा को मात्र शौरसेनी प्रचारित करते है वे उक्त आचार्यों को मिथ्या सिद्ध कर अपने मुँह मियाँ मिटू बनने का प्रयत्न कर रहे हैं। पूजा मे भी कहा है - 'दश अष्टमहाभाषा समेत लघुभाषा सात शतक सुचेत।' देवो के द्वारा किए गए अतिशयो मे भी वर्णन है-'देवरचित हैं चारदश अर्धमागधी भास' जिसे अब शौरसेनी मे व्याकरण की दुहाई देकर बदला जा रहा है, जो कि दिगम्बरत्व को घातक होगा। यदि आगमभाषा शौरसेनी है तो किसी भी दिगम्बर-आगम मे या अतिशयो मे इसका उल्लेख होना चाहिए। क्या अतिशयो मे कही ऐसा कहा है-'देव रचित हैं चारदश शूरसेन की भास' परन्तु हमारे देखने मे तो ऐसा नही आया और जब आगम मे ऐसा नही है तब हम किसी भॉति भी मानने को तैयार नही कि दिगम्बर आगमो की भाषा शौरसेनी है। विगत में श्रुतपचमी के अवसर पर पद्मपुराण के निम्नलिखित श्लोक के द्वारा शौरसेनी की यद्वा तद्वा पुष्टि की गई - नामाख्यातोपसर्गेषु निपातेषु च संस्कृता। प्राकृती शौरसेनी च भाषा यत्र त्रयी स्मृताः।। २४।। ११
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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