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कैन्सर में तब्दील होती शौरसेनी की गाँठ
-पद्मचन्द्र शास्त्री, नई दिल्ली
हमने दो दशक पूर्व से सावधान किया था और अब तक करते रहे है कि कोई हमारे आगमो से खिलवाड न करे-न भाषागत सशोधन करे। सशोधन के नाम पर जो भी दिया जाए टिप्पण मे दिया जाए। जिसकी सम्पुष्टि अनेक विद्वानो द्वारा की गई। उक्त कथन हमने तब किया जब प्राकृत को व्याकरण पुष्ट मानकर दिगम्बर-आगमो की भाषा को शौरसेनी घोषित किया गया।
सभी जानते है कि श्वेताम्बरो ने अपने आगमो को भगवान महावीर और मूलाचार्य गणधर की भाषा को अर्धमागधी घोषित कर रखा है। हालांकि वे आगम वास्तव मे अर्धमागधी मे नही अपितु जैन महाराष्ट्री भाषा मे निबद्ध किए गए है और आचार्य हेमचन्द्र ने तदनुसार ही व्याकरण की रचना की है। वास्तव मे तो दिगम्बर आगम ही अर्धमागधी के है और व्याकरण से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है। यत · प्राकृत प्रकृति की बोली है-व्याकरणादि द्वारा सशोधित (सस्कारित) नहीं, जैसा कि ताण्डव रचा जा रहा है। क्योकि सभी व्याकरण बाद की रचनाएँ हैं। आगम भाषा के विषय मे हमारे आगमो मे कहा गया है - 'अर्ध च भगवद्भाषाया मगधदेश भाषात्मकं अर्ध च सर्वभाषात्मकम्'
-दर्शनपाहुड टीका, ३५/३८/१३
'अट्ठारस महाभासा खुल्लयभासा वि सत्तसयसंखा'
-तिलोयपण्णत्ति/५८४/६०