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________________ अनेकान/३ का गुणा-भाग अधिक होता है। कमीशन आज की सबसे बड़ी जरूरत हो गई है, सो इस क्षेत्र में भी इसकी हिस्सेदारी तय होती होगी? कुल मिलाकर प्रतीत होता है कि जैसे कुछ व्यक्तियो ने कोई इण्डस्ट्री खोल रखी हो जिसमे तीर्थ और पचकल्याणक आदि के माध्यम से समाज के धन का उपयोग किया जा रहा है। यह बात अलग है कि इन प्रायोजित तीर्थो और पंचकल्याणको से न समाज का भला होता है और न जिनशासन की प्रभावना। आगे इनकी महिमा सम्मेदशिखर या प्राचीन तीर्थों जैसी हो सकेगी इसमें भी सन्देह है क्योकि प्राचीन तीर्थ तो त्याग तपस्या के कारण पूजनीय माने जाते है और इन नए तीर्थों की पूज्यता का आधार पराया धन है। भला, जो सब तरह से अपरिग्रही हो ऐसे मे वे परिग्रह के पाप से बच सकते हैं क्या? इसे सिद्धान्त ग्रन्थो मे खोजने की आवश्यकता है। हमें लगता है कि तीर्थकरवत बनने की लालसा मे नित नए तीर्थों की जो स्थापना की जा रही है वह सर्वथा अप्रासगिक और धर्म के विपरीत है। आगमनिष्ठ-विभूति का अवसान प्रो. खुशालचन्द गोरावाला, (वाराणसी) के निधन का समाचार सुनकर वीर सेवा मन्दिर परिवार स्तब्ध रह गया। जैन सघ समर्पित, स्वतन्त्रता सेनानी, आगमनिष्ठ प्रो. गोरावाला विद्वानो की उस पंक्ति की विभूति थे, जिन्हे मान-सम्मान, लोकेषणा, धनलिप्सा से अधिक आगम रक्षा का भाव रहता था। शौरसेनी भाषा की बलात् स्थापना और प्रभावना को आगम परम्परा के लिए आत्मघाती कदम निरुपित कर उन्हे समय प्रमुख आचार्य से दो-टूक बात करने मे कोई झिझक नहीं हुई। 'स्वभावो हि दुरतिक्रमः' की प्रतिमूर्ति को आगम परिप्रेक्ष्य में निर्णीत सन्दर्भो मे कोई भी उन्हें डिगा नही सका। ऐसे परम्परा निष्ठ पू सन्त गणेश प्रसाद जी वर्णी के शिष्य, धर्माचरण में प्रवृत्त दिवगत मनीषी विद्वान् प्रो गोरावाला के प्रति वीर सेवा मन्दिर की विनम्र श्रद्धाञ्जलि । - संपादक
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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