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________________ अनेकान्त/१८ चिन्ह अंकित है। दोनो पार्यो में शासन देवता चक्रेश्वरी और गोमुख का अंकन है। दोनों द्विभुजी और अलंकरण धारण किये हुए है। चक्रेश्वरी के एक हाथ में चक्र तथा दूसरे मे बिजौरा है। मूर्ति के मस्तक पर त्रिछत्र और दोनों ओर सवाहन गज हैं। त्रिछत्र के ऊपर दो पंक्तिओ मे पद्मासन और कायोत्सर्ग मुद्रा मे २३ तीर्थकर मूर्तियाँ हैं। पीठिका के नीचे की और उपसको का अंकन किया गया है। इसका समय ११वीं शताब्दी अनुमानित किया गया है।९ उक्त पुरातत्व सामग्रियो के अतिरिक्त भेलूपुर स्थित पार्श्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के समय भू-गर्भ से अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिनमे पार्श्वनाथ की एक भव्य एवं प्राचीन प्रतिमा प्राप्त हुई है। खुदाई करते समय असावधानी के कारण पार्श्वनाथ की प्रतिमा खण्डित हो गई। प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला के प्रसिद्ध अध्येता प्रो० एम०ए० ढाकी ने इस दुर्लभ प्रतिमा को ई० सन् ५वी शती का तथा अन्य कलाकृतियों को ९वी और ११वी शती का बतलाया है। अज्ञानतावश अनेक मूल्यवान जैन कलाकृतियाँ मदिर की नीव मे ही डाल दी गईं। इस प्रकार पुरातत्व की प्रचुर उपलब्धता इस ओर संकेत करती है कि काशी की जैन श्रमण परम्परा का इतिहास बहुत प्राचीन है और तीर्थकर पार्श्वनाथ का प्रभाव अन्य तीर्थंकरो की अपेक्षा अधिक रहा है। इतना ही नही आज भी जगह-जगह पर दिगम्बर जैन मूर्तियो के अवशेष विभिन्न रूपों मे पूजे जा रहे है। उदाहरण के लिए “मूड़कट्टा बाबा” के नाम से विख्यात जो मूर्ति अवशेष रूप मे उपलब्ध है, वह एक कायोत्सर्ग मुद्रा मे खण्डित दिगमर जैन मूर्ति है। यह मूर्ति दुर्गाकुण्ड भेलूपुर मार्ग मे मुख्य सड़क पर स्थित है। “बाँस फाटक' जिसे आचार्य समन्तभद्र की उस चमत्कारिक घटना के रूप में स्मरण किया जाता है जो आचार्य समन्तभद्र द्वारा स्वयंभूस्तोत्र की रचना का कारण बना था। सारनाथ महात्मा बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली के रूप में प्रसिद्ध यह स्थल जैन परम्परा के ११वें तीर्थकर श्रेयांसनाथ के जन्मस्थली से सम्बद्ध है।
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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