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अनेकान्त/५
व्यवहारनय भूतार्थ है
-रूपचन्द कटारिया समय-पाहुड़ की प्राचीन प्रतियो में ग्यारहवीं गाथा का मूल पाठ निम्न प्रकार से मिलता है
ववहारो भूदत्यो भूदत्यो देसिदो दु सुद्धणओ।
भूदत्थमस्सिदो खलु सम्मादिट्टी हवइ जीवो।। (१) ताड़पत्रीय प्रति, श्रवणबेलगोला। (२) समय-प्राभृत प० गजाधर लाल, सनातन जैनग्रन्थमाला वी नि स
२४४० १९१४ (३) समय-प्राभृत श्रीलाल जैन काव्यतीर्थ, भारतवर्षीय जैन सिद्धान्त
प्रकाशिनी संस्था, कलकत्ता वी नि स २४६८ (४) समयसार-परमेष्ठीदास न्यायतीर्थ, श्री दि जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट,
सोनगढ़ वी नि स २४६९ उक्त गाथा की संस्कृत छाया निम्न प्रकार से की गई है
'व्यवहारोऽभूतार्थो भूतार्थो दर्शितस्तु शुद्धनयः।
भूतार्थमाश्रितः खलु सम्यग्दृष्टिर्भवति जीवः।। व्यवहारनय अभूतार्थ अर्थात् असत्यार्थ है, शुद्ध अर्थात् निश्चयनय भूतार्थ सत्य है। निश्चय के आश्रित जीव सम्यगदृष्टि होता है।
व्यवहार नयो कि सर्व एवाभूतार्थत्वादभूतार्थ प्रद्योतयति, शुद्ध नय एक एव भूतार्थत्वात् भूतमर्थ प्रद्योतयति।
-आत्मख्याति टीका व्यवहारनय सब ही आभूतार्थ है इसलिए वह अविद्यान असत्य अभूत अर्थ को प्रगट करता है। शुद्ध नय एक ही भूतार्थ होने से विद्यमान सत्यार्थ अर्थ को प्रगट करता है।
___-प परमेष्ठीदास कृत अनुवाद