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________________ अनेकान्त/४ भट्टारकों की नग्नता और क्रियाकलाप हाल ही में हमें श्री महावीरजी अतिशय क्षेत्र के संयुक्तमंत्री श्री बलभद्र कुमार जैन द्वारा प्रेषित क्षेत्र का संक्षिप्त इतिहास एवं कार्य विवरण मिला है। जिसमे भट्टारकों के नग्न रहने जैसे प्राचीनतम रूप को अंकित किया गया है साथ में उनके मूर्ति प्रतिष्ठा कराने आदि जैसे अनेक कार्य कलापो का उल्लेख भी है। तथाहि “सवत् १८२७ (सन् १७७०) मे वरवतराय साह द्वारा रचित 'बुद्धिविलास' ग्रथ के पृष्ठ ७८ के अनुसार फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल (सन् १३५१ से १३८०) में प्रभाचन्द्र भट्टारक ने दिल्ली मे लगोट पहनने की प्रथा का प्रारम्भ किया था। उससे पूर्व भट्टारक नग्न ही रहते थे। इस महत्त्वपूर्ण लक्ष्य की पुष्टि राजस्थान विश्वविद्यालय के जैन अनुशीलन केन्द्र के डॉ प्रेमचन्द्र जैन के उस लेख से भी होती है जो सन् १९८३ मे प्रकाशित महावीर जयन्ती स्मारिका के द्वितीय खण्ड के पृष्ठ ४२ पर छपा है। लेख मे डॉ जैन ने लिखा है कि दिल्ली के शासक फिरोजशाह के शासन मे नागौर क्षेत्र के दिगम्बर जैन समुदाय के भट्टारक द्वारा दिल्ली में वस्त्र धारण करने की प्रथा का श्रीगणेश हुआ। -पृष्ठ ७ “भट्टारको को जागीर मे ग्राम, भूमि, बाग, मन्दिरो के निर्माण, धार्मिक अनुष्ठान, मूर्तिप्रतिष्ठा के लिए अनुदान दिए जाते थे।"-प्रस्तावना पृष्ठ ५ भट्टारकों की कार्यावली एवं पद्धति प्रसंग में उनके कार्यों में मूर्तिप्रतिष्ठा, ग्रन्थ लेखन और उनका संरक्षण, शिष्य, परम्परा, तीर्थयात्रा और व्यवस्था आदि का उल्लेख है। उक्त प्रसंग से पाठकों को सन्देह न हो जाय कि कहीं वर्तमान में उन जैसे कार्यकलापों में लीन कतिपय नग्न साधु उन प्राचीनतम भट्टारकों की उसी परम्परा में तो नहीं हैं। हमें स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि दिगम्बर मनि के २८ मूलगुण होते हैं-वे भट्टारकों में नहीं होते। दिगम्बर मुनि सदैव विषयाशारहित, आरम्भ-परिग्रह रहित और सदा ज्ञान, ध्यान एवं तप में लीन रहते हैं-वे भट्टारकों की भाँति जागीर आदि के प्रपंचों से सर्वथा रहित होते हैं। -सम्पादक
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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