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1882
वीर सेवा मंदिर का त्रैमासिक
अनेकान्त (पत्र-प्रवर्तक : आचार्य जुगल किशोर मुख्तार 'युगवीर')
| वर्ष-५१ किरण-१
जनवरी-मार्च १९९८
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१. संबोधन (ज्योति प्रसाद जैन, देवबन्द) २. भट्टारकों की नग्नता और क्रियाकलाप ३. व्यवहारनय भूतार्थ है
(रूपचन्द कटारिया) ४. अपभ्रंश साहित्य में पार्श्वनाथ
(प्रो० डॉ० लाल चन्द जैन) ५. जिनवाणी में काट-छांट : समाज धोखे में
(पं० नाथूलाल जैन शास्त्री) ६. श्रुत, समय पाहड़ और नय
(ले० जस्टिस एम०एल० जैन)
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