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अनेकान्त/२२
४००
१८००
पुष्पदन्त रइधु तिलोपति उत्तरपुराण १ गणधर
१०
१० ४/९६३ १० २ पूर्वमाता ३५०
३५०
३५० ३ मुनि १६०००
१६००० १६०००
मोक्षगामी ४ शिक्षक १०९५०
१०९०० १०९५० ५. अवधिज्ञानी १४०० १५०० १४०० १४०० ६ केवलज्ञानी १०००
१५०० १००० १००० ७ विक्रियाधारी १००० १५०० १००० १००० ८ मन पर्ययज्ञानी ७५०
९०० ७५० (विपुलमती) ७५० ९ वादी
६००
- ६०० ६०० १० श्रुतज्ञानी
८०० ११ आर्यिका ३६००० ३८००० ३६०० ३६००० १२ श्रावक
एक लाख एक लाख एक लाख एक लाख १३ श्राविकाऐ तीन लाख तीन लाख तीन लाख तीन लाख
सत्ताईस हजार १४ स्त्रीमुक्ति
१९०० स्थान वाली १५ देव-देवियाँ सख्यातीत असख्यात
असख्यात १६ तिर्यञ्च सख्यात
सख्यात धर्मोपदेश और विहार :
पुष्पदन्त के अनुसार ७० वर्षों तक किन्तु आ० गुणभद्रनुसार ५ माह कम ७० वर्षों तक विहार करते हुए भगवान पार्श्वनाथ ने धर्मोपदेश देकर जीवो का कल्याण किया था।
निर्वाण :
पुष्पदन्त, पद्मकीर्ति और रइधु ने प्राचीन परम्परा का अनुकरण करते हुए माना है कि भगवान पार्श्वनाथ सघ को ज्ञान प्रदान करते हुए जब उनकी आयु मात्र एक माह शेष रह गई थी ३६ मुनियो के साथ सम्मेद शिखर पर प्रतिमायोग धारण कर विराजमान हो गये और वही पर १०० वर्ष की आयु मे उक्त मुनियो के साथ मोक्ष प्राप्त किया था। पद्मकीर्ति के अलावा पुष्पदन्त और रइधु ने तिलोयपण्णत्ति और उत्तपुराण की तरह अपने ग्रन्थो मे निर्वाण प्राप्त करने की तिथि श्रावण शुक्ला सप्तमी और विशाखा नक्षत्र का निर्देश किया है। अन्तर केवल इतना है कि तिलोयपण्णत्ति मे उन्हे प्रदोषकाल मे और उत्तर पुराण मे
अप्रमाण