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________________ अनेकान्त/२३ प्रात काल मे मोक्ष होने का उल्लेख उपलब्ध है, जबकि अन्य आलोच्य ग्रन्थो मे उक्त काल का कथन नही हुआ है। जनसामान्य आज भी विहार मे स्थित भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण स्थल सम्मेद शिखर को पारसनाथ हिल के नाम से जानते है। भगवान पार्श्वनाथ का तीर्थ १५० वर्षों और यतिवृषभ के अनुसार १७८ वर्षों तक प्रवर्तित रहा। उपर्युक्त गहन विवेचन से निम्नांकित बिन्दु प्रकट होते है १ भगवान पार्श्वनाथ के जीवन मे घटित महत्वपूर्ण घटनाएँ उन्हे ऐतिहासिक महापुरुष सिद्ध करने में स्वत. प्रमाण है। २ भगवान पार्श्वनाथ के जीवन मे उत्तरोत्तर आत्म विकास की परम्परा उपलब्ध है। इसके विपरीत कमठ का जीवन अशुभ क्रियाजन्म उत्तरोत्तर पतन का प्रतीक है। अत सम्यक्त्व और आत्मालोचन ही आत्मोत्थान का साधन है। विक्रम सवत् १०वी शताब्दी से १६वी शताब्दी तक के जैन आचार्यो को भगवान पार्श्वनाथ का आकर्षित व्यक्तित्व बहुत भाया। यही कारण है कि अपभ्रश भाषा मे भगवान पार्श्वनाथ विषयक स्वतत्र महाकाव्यो और खण्डकाव्यो की रचना कर आचार्यों ने उनके प्रति अपनी गाढ श्रद्धा प्रकट की है। इन्हे भगवान पार्श्वनाथ के प्रति अर्चना और प्रेमसमर्पण के प्रतीक कहा जा सकता है। ४ पार्श्व विषयक उपर्युक्त साहित्य के तुलनात्मक आलोडन से ज्ञान होता है कि अपभ्रश भाषा मे निबद्ध पार्श्व विषयक साहित्य का आधार आचार्य यतिवृषभ कृत तिलोयपण्णत्ति और आचार्य गुणभद्र रचित उत्तरपुराण रहा। इनमे आगत घटनाओ को सकोच और विस्तार पूर्वक प्रस्तुत किया गया है। ५ अपभ्रश भाषा मे सृजित ग्रन्थो का सर्वेक्षण से जिन बारह ग्रन्थो का उल्लेख हुआ, उनमे से तीन महाकाव्य प्रकाशित, छह अप्रकाशित और तीन अनुपलब्ध है। ६ ये ग्रन्थ प्राचीन भारतीय सस्कृति, भूगोल और इतिहास की धरोहर हैं। ७ उपर्युक्त विषयक ग्रन्थो की विभिन्न भण्डारो मे विद्यामन पाण्डुलिपियो को पश्यतोहरा चूहो, दीमक आदि द्वारा हजम कर जाने का भय है, इसलिए अनुपलब्ध और अप्रकाशित उपर्युक्त ग्रन्थो की पाण्डुलिपियो को खोजने और प्रकाशित कराने का सार्थक प्रयास किया जाना चाहिये। प्राकृत शोध-संस्थान, वैशाली
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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