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अनेकान्त/२१
करते हुए पुष्पदन्त और रइधु । चैत्रमाह के कृष्ण पक्ष मे उन्हे केवलज्ञान होने का उल्लेख किया है। किन्तु उक्त ज्ञान प्रकट होने की तिथि पुष्पदन्त ने प्रतिपदा, रइधु ने यतिवृषभ की तरह चतुर्थी और गुणभद्र ने चतुर्दशी लिखी है। आ० पद्मकीर्ति इस सबध मे मौन है। रइधु को छोड़ कर पुष्पदन्त ने यतिवृषभ और गुणभद्र की तरह माना है कि उन्हे यह ज्ञान विशाखा नक्षत्र मे प्राप्त हुआ था। किन्तु किसी भी पासणाहचरिउ न तो यतिवृषभ की तरह उक्त ज्ञान पूर्वाहन में होने का निर्देश है .र न गुणभद्र की तरह प्रात काल मे होने का निर्देश है। यह केवलज्ञान पार्श्वनाथ को दीक्षा-वन मे होने का उल्लेख पुष्पदन्त ने किया है। पद्मकीर्ति ने भीमाटवी वन मे और यतिवृषभ ने शक्रपुर मे उक्त ज्ञान प्राप्त होने का उल्लेख किया है।
छद्मावस्था :
यहाँ यह भी विचार कर लेना आवश्यक है कि कितने समय तक तप करने के पश्चात् भ० पार्श्वनाथ को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। पद्मकीर्ति और रइध इस सम्बन्ध मे चुप है। आ० पुष्पदन्त ने यतिवृषभ और गुणभद्र की तरह उल्लेख किया है कि चार माह तक तप करने के पश्चात् उन्हे केवलज्ञान मिला था।
कमठ का भयभीत होना और पार्श्व की शरण में जाना :
जब कमठ को ज्ञात हुआ कि भ० पार्श्वनाथ को केवलज्ञान मिल गया है तो उसके मन मे भयमिश्रित चिन्ता हुई। पद्मकीर्ति और रइधु ने कहा है कि जब कमासुर की इन्द्र के वज से कही भी रक्षा न हुई तो वह भगवान पार्श्वनाथ के शरण मे गया। उन्हे प्रणाम कर वह भयमुक्त हो गया। उसने क्षमा याचना करते हुए अनेक प्रकार से अपनी गर्दा की और हर्षित मन से सम्यवत्व ग्रहण कर समस्त पाप-दोषो से मुक्त हो गया। उसका कुमति ज्ञान भी नष्ट हो गया।
श्रमण-संघ :
भगवान पार्श्वनाथ का सघ विशाल होने का उल्लेख हुआ है। सर्वप्रथम हस्तिनापुर के राजा स्वयभू दीक्षा ले कर प्रथम गणधर बने और उसकी पुत्री प्रभावती (मरुभूति की वसुन्धरी पत्नी) जिन दीक्षा लेकर आर्यिका सघ की प्रधान आर्यिका हुई । यद्यपि इस सम्बन्ध मे यतिवृषभ और गुणभद्र से मतभिन्नता प्रकट है। क्योकि यतिवृषभ सुलोका को और गुणभद्र ने सुलोचना को प्रधान आर्यिका माना है। उनके चतुर्विध सघ मे श्रमण. आर्यिका, श्रावक और श्राविकाओ की सख्या निम्नाकित है -