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अनेकान्त/२०
के प्रणेताओ मे एकरूपता नहीं है। आ० पुष्पदन्त ने आचार्य गुणभद्र का अनुकरण करते हुए मत प्रकट किया है कि भ० पार्श्वनाथ को प्रथम पारणा अष्टोपवास के बाद गुल्मखेट के राजा ब्रहम के यहाँ हुई थी। पुष्पदन्त ने राजा के नाम का उल्लेख नही किया जब कि उत्तरपुराण मे राजा का नाम श्याम वर्णवाला धन्य लिखा है। पद्मकीर्ति और रइधु इस बात से तो सहमत है कि उनकी प्रथम पारणा गजपुर के राजा वरदत्त के यहाँ अष्टोपवास के बाद हुई थी। केवल यतिवृषभ ने ही अष्टोपवास के बाद प्रथम पारणा का उल्लेख किया है।
उपसर्ग निवारण :
जब दीक्षा ले कर पार्श्वनाथ घोर तप कर रहे थे, उसी समय कमठ के जीव ने जो उनके जन्म जन्मान्तरो का बैरी था, सात दिनो तक भयानक उपसर्ग कर उन्हे जान से मारने का प्रयास किया। इसका वर्णन पुष्पदन्त आदि सभी अपभ्रश के महाकवियो ने किया है। यहाँ प्रश्न यह है कि उपसर्ग करने वाला देव कौन था? जिस तापस ने नाग के जोड़े को मरणासन्न कर दिया था उसने अभिमान पूर्वक अनशन तप कर और जीव हिसा तथा परिग्रह का त्याग कर देव योनि प्राप्त की थी। पुष्पदन्त और रइधु ने उस देव का नाम सवर बतला कर आचार्य गुणभद्र कर अनुकरण किया है, किन्तु पद्मकीर्ति ने उसे मेघमल्ल (मेघमाली) और कमठ कहा है।
उस सवर देव या मेघमाली देव कृत भयकर उपसर्गों का निवारण कैसे हुआ? इस सबध मे पुष्दन्त ने आचार्य गुणभद्र का अनुकरण करते हुए कहा है कि पूर्वजन्म में मंत्र सुनाने से उपकृत हुए धरणेन्द्र और पद्मावती पृथ्वी से बाहर आये। धरणेन्द्र ने भगवान पार्श्वनाथ को चारो ओर से घेर कर अपनी गोदी मे उठा लिया। पद्मावती वजमय छत्र तान वहाँ खड़ी हो गई। इस प्रकार उस भयानक महावृष्टि रूप उपसर्ग उन्होने विनष्ट किया । पद्मकीर्ति ने उपसर्ग निवारण की चर्चा करते हुए पुष्पदन्त का अनुकरण किया है। रइधु के उक्त कथन मे कुछ अतर है। उन्होने लिखा है कि फणीश्वर और पद्मावती प्रदक्षिणा दे स्तुति आदि करने के पश्चात् उपसर्ग दूर करने वाला कमलासन बनाया और उस पर पारसनाथ को विराजमान कर उसे अपने मस्तक पर रख कर उनके ऊपर होने वाले उपसर्गों को दूर किया।
केवलज्ञान की प्राप्ति :
भगवान पार्श्वनाथ को कब और कहाँ केवलज्ञान की प्राप्ति हुई? इस सबध मे उक्त आचार्यो मे मतैक्य नहीं है। आचार्य यतिवृषभ और गुणभद्र का अनुकरण