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________________ अनेकान्त/१७ भगवान पार्श्वनाथ और कमठ के पूर्व भव : भगवान पार्श्वनाथ और कमठ के दस भवो का वर्णन पुष्पदन्त, पद्मकीर्ति और रइधु ने विस्तार से किया है। उनके पूर्व भवो मे उनके नामो के सबध मे उनमे मतैक्य भी है। पहले भव मे पार्श्वनाथ के जीव को विश्वभूति और कमठ के जीव को कमठ कह कर अपभ्रश के उक्त महाकवियो ने उत्तरपुराण का अनुकरण किया है। दूसरे भव मे पार्श्वनाथ के जीव को पुष्पदन्त ने वजघोष हस्ति, आ० पद्मकीर्ति ने अशनिघोष हस्ति तथा रइधु ने पविघोष करि और इस भव मे कमठ के जीव को एक स्वर से उन्होने कुक्कुट सर्प होने का उल्लेख किया है। तीसरे भव मे पार्श्वनाथ के जीव को सहस्रार कल्प का देव ओर कमठ को धूमप्रभ नरक का जीव लिखकर आचार्य गुणभद्र का पुष्पदन्त आदि ने अनुकरण किया। केवल पद्मकीर्ति ने कमठ के जीव को नरक गया लिखा है, नरक का नाम नही दिया। चौथे भव मे भगवान पार्श्वनाथ के जीव को पुष्पदन्त ने विद्युतवेग और तडिन्माला का पुत्र रश्मिवेग, पद्मकीर्ति ने विद्युतगति और मदनावली का पुत्र किरणवेग एव रइधु न अशनिगति और तडितवेग का पुत्र अशनिवेग और कमठ के जीव को सभी ने अजगर होना लिखा है। पाचवे भव मे पुष्पदन्त आदि ने पार्श्व के जीव को अच्युत कल्प का इन्द्र और कमठ के जीव को पुष्पदन्त ने तमप्रभ नरक मे, पद्मकीर्ति ने रौद्र नरक मे और रइधु ने पचम नरक मे जन्म लेने का उल्लेख किया। छठे भव मे पार्श्वनाथ पुष्पदन्त के अनुसार वज्रवीर्य राजा और विजया रानी के वजबाहु चक्रवर्ती पुत्र थे। पद्मकीर्ति ने वजवीर्य और लक्ष्मीमति तथा 'रइधु ने वजवीर्य और विजया का पुत्र वज्रनाभ होना बतलाया है। कमठ के इस भव के जीव का नाम पुष्पदन्तानुसार भील कुरगक और शेष कवियो के अनुसार शबर कुरशक था। सातवे भव मे पार्श्वनाथ के जीव को पुष्पदन्त ने मध्यम ग्रैवेयक का एव पद्मकीर्ति तथा रइधु ने ग्रैवेयक का देव कहा है। पुष्पदन्त और पद्मकीर्ति ने इस भव मे कमठ के जीव को नरक जाने का उल्लेख किया जबकि रइधु ने अन्तिम नरक मे जाना माना है। आठवे भव मे पार्श्व को पुष्पदन्त ने गुणभद्र की तरह वज्रबाहु ओर प्रभकरी का पुत्र आनन्द मण्डलेश्वर, पद्मकीर्ति ने कनकप्रभ चक्रवर्ती और रइधु ने आनन्द चक्रवर्ती कहा है। इस भव मे कमठ के जीव को सिह होना लिखा है। पुष्पदन्त इसके अपवाद है। नौवे भव मे पार्श्वनाथ को पुष्पदन्त ने प्राणत कल्प का, पद्मकीर्ति ने वैजयत का और रइधु ने चौदहवे कल्प का देव कहा है जबकि कमट के जीव को नरक गामी, पद्मकीर्ति ने रौद्र नरक और रइधु ने धूमप्रभ नरक गामी बतलाया है। दसवे भव मे
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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