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अनेकान्त/6 सिंधु-सौवीर संघ-महाजनपद के राजा उदयन के साथ, पुत्री मृगावती का विवाह वत्स महाजनपद के शतानीक के साथ, पुत्री शिवा का विवाह अवन्ती के चण्ड प्रद्योत के साथ तथा चेलना का विवाह मगध के सेनापति बिम्बिसार के साथ हुआ था। चेतक की बहिन का विवाह महावीर के पिता के साथ तथा श्वेताम्बर जैन परम्परा के अनुसार उनकी पुत्री ज्येष्ठा का विवाह महावीर के बड़े भाई नन्दिवर्धन के साथ हुआ था। यह संघ-महाजनपद राजनीतिक दृष्टि से छठी शताब्दी ईसा पूर्व के अन्त में सर्वाधिक शक्तिशाली था। इसमें संस्कृति की महती प्रभावना थी।
उदीच्य, प्राच्य और दक्षिणात्य भारत के सभी महाजनपदों के लोग क्षत्रिय थे। वृज्जियों का उल्लेख वैयाकरण पाणिनी ने किया है तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं ब्राह्मण ग्रंथों में उनका उल्लेख हुआ है।
2. काशी संघ-महाजनपद-दसवीं-नौंवी शती ईसा पूर्व में काशी संघ-जनपद सर्वाधिक शक्तिशाली था तथा वह 800 ईसा पूर्व में संघ-महाजनपद बन गया था। काशी की प्रसिद्धि ब्राह्मण काल और उपनिषद काल में भी व्याप्त थी जब अजातशत्रु काशी संघ-महाजनपद का सर्वोच्च नेता था। उसने ब्राह्मण समुदाय को आत्मविद्या एवं जैन धर्म का पाठ पढाया था।
3. कौशल संघ-महाजनपद-प्रसेनजित इस महाजनपद का शक्तिशाली और प्रभावशाली सर्वोच्च नेता था। वह नौ संघ नेताओं का अधिपति था। उसने मगध की राजकुमारी से विवाह किया था मगध के सर्वोच्च सेनापति बिम्बिसार का विवाह भी कौशल की कन्या से हुआ था। इनका मागधों के साथ संघर्ष रहता था।
4. मल्ल संघ-महाजनपद- यह नौ संघ जनपदों से मिलकर स्थापित हुआ था। जिनके नौ जनपद नेताओं से मिलकर यहां की सर्वोच्च राजनैतिक और सैनिक सत्ता बनी थी। इनका मागधों के साथ संघर्ष बना रहता था।
5. अवन्ती संघ-महाजनपद- यह उत्तरी अवन्ती और दक्षिणी अवन्ती इन दो भागों में विभक्त था। चण्ड प्रद्योत यहां का एक प्रमुख राजन था जिसका मगध महाजनपद के साथ सैनिक सघर्ष हुआ था। इसके अन्तर्गत तीन संघ जनपद थे।
6. वत्स संघ-महाजनपद- इसकी राजधानी कोसम्बी थी। इसके साथ भर्ग जनपद भी सम्मिलित था। इसका सर्वोच्च नेता उदयन था जो अपने समय का प्रसिद्ध सेनापति था। ___7. शूरसेन संघ-महाजनपद- यदुओं का ऋग्वेद में विवरण मिलता है तथा तुर्वस जनपद, अनु जनपद, द्रुयु जनपद एवं पुरु जनपद के साथ मिलकर वे पंचजन (श्रमण जैन धर्मी पांच जनपद) कहलाते थे। वे विश्वामित्र की सैनिक कमान में दाशराज्ञ (दश राजाओं) के रूप में आर्यों के विरुद्ध युद्ध लड़े थे तथा द्वितीय ब्रह्मार्य-भारत महायुद्ध में, नौसैनिक संघर्ष में हार गये थे तथा तत्पश्चात् तृतीय आर्य-श्रमण महायुद्ध में भी हारे थे। शूरसेन संघ-महाजनपद की राजधानी मथुरा थी। वे बाद में अनेक शाखाओं में बंट गये थे किन्तु वे 500 ईसवी तक निरन्तर ब्राह्मण वर्चस्व के विरोधी रहे। वे व्रात्य कहलाते थे तथा पार्श्व और महावीर के अनुयायी थे। शूरसेन संघ-महाजनपद में अन्धक, वृष्णि और सत्वत ये तीन संघ जनपद थे।
8. मगध संघ-महाजनपद- यह विहार राज्य के पटना और गया जिलों से मिल कर बना था तथा गिरिब्रज इसकी राजधानी थी। ऋग्वेद में कीकटों का नाम