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अनेकान्त/7 आया है जो आचार्य यास्क के अनुसार, आर्य विरोधी थे तथा मागधों का ही भाग थे। अथर्ववेद और यजुर्वेद में मागधों का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद का व्रात्य काण्ड मागधों को एकव्रात्य (महाश्रमण पार्श्वनाथ) का अनुयायी मानता है। मगध निरन्तर और 1100 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व तक लगातार ब्राह्मण विरोधी जनपद बना रहा तथा तदुपरान्त अन्यों के साथ वह भी छठी शती ईसापूर्व के आरंभ में संघ-महाजनपद बन गया।
यह भी अन्य संघ जनपदों की भांति संघ जनपदों का परिसंघ था। इसके अन्तर्गत लगभग 80000 ग्राम या नगर जनपद थे जिनके शासन के लिए उनकी अपनी-अपनी परिषदें और ग्रामक थे। क्षेणिय बिम्बसार मूलतः सम्भवतः वज्जि संघ महाजनपद का एक सेनापति था जिसे चेतक की पुत्री चेलना ब्याही थी। ब्राह्मणों से उसका अच्छा सम्बन्ध था। उसके राज्यकाल में अन्य परिवर्ती राज्यों की भांति श्रमण धर्म की अच्छी प्रभावना थी। वह एक कशल और शक्तिशाली सेनापति भी था। उसने अंग संघ से युद्ध कर विजय प्राप्त की थी और उस महाजनपद को अपने राज्य में मिला लिया था। उसकी राजधानी चम्पा तत्कालीन श्रमण विश्व के छह प्रसिद्ध नगरों में से थी। उसकी मृत्यु कुणिक अजातशत्रु के हाथों हुई थी जो इस प्रकार मगध संघ-महाजनपद का सर्वोच्च सत्ताधारी हो गया था।
मगध संघ-महाजनपद के पास उस काल के अति संहारकारी सैनिक शस्त्रास्त्र विद्यमान थे। कुणिक अजातशत्रु के शासनकाल में 527 ईसा पूर्व में महावीर का तथा 482 ईसा पूर्व में महाश्रमण गौतमबुद्ध का परिनिर्वाण हुआ। उसके राज्य काल में श्रमणकालीन संघ महाजनपद व्यवस्था का हास होने लगा था तथा श्रमणवाद पर ब्राह्मणवाद हावी होने लगा था तथा एकराट महाजनपदीय राजनीतिक व्यवस्था विकसित होकर सम्राट महाजनपद पद्धति का रूप ले रही थी।
9. अश्वक संघ महाजनपद- यह गोदावरी नदी के किनारे स्थित था तथा उसके निवासी आन्ध्र लोग थे। इसकी राजधानी पोदन (वर्तमान बोधन) थी। बौद्ध जातकों में इसका नाम पोटिल आया हैं यहां इस्वाकुवंशी राजा राज्य करते थे। यह कृष्णा और गोदावरी नदियों के मध्य विद्यमान था। इसे वस्तुतः आन्ध्र संघ महाजनपद कहा जा सकता है जो शन्तिपूर्ण संघ महाजनपद था।
10. पाण्ड्य संघ-महाजनपद- ये लोग पाध भी कहलाते थे तथा प्रागार्य प्राक्द्रविड़ कृष्णवर्गीय थे जो सुदूर दक्षिण भारत स्थित शूरसेन संघ महाजनपद से प्रव्रजन करके आये थे, जिनका विवरण यूनानी इतिहासकारों ने हेराक्लीज के नाम से दिया है। पाण्ड्य राष्ट्र में मातृ प्रधान राज्य व्यवस्था थी। इस महाजनपद में ३६० जनपद सम्मिलित थे। पाण्ड्य संघ महाजनपद में आर्य-पूर्व प्राक्द्राविड़ जनराज्य पद्धति विद्यमान थी।
11. सिंहल संघ महाजनपद- आधुनिक श्रीलंका का प्राचीन नाम तपोवने था जो सदा से भारत का ही अंग रहा तथा साम्राज्यवादी अंग्रेज शासकों ने उसे बीसवीं शती के पूर्वार्ध में राजनीतिक स्वार्थ वश भारत से अलग कर दिया था। यह कन्याकुमारी से संलग्न है। यहां सोना, चांदी, मोती तथा जवाहरात प्रचुरता में पाये जाते हैं। यहां के निवासी शूरसेन यदुवंशी कृष्ण के उपासक रहे हैं। यहां राजा का निर्वाचन किया जाता था जो 30 सदस्यों वाली एक सलाहकार परिषद् की सहायता से शासन करता था, जिसका विवरण यूनानी, ब्राह्मण, जैन और बौद्ध 9. अथर्ववेद- १५.२.५।