SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/8 ग्रंथों में मिलता है। यहां के लोग अहिंसा धर्म के मानने वाले थे। समीपवर्ती भारत के पाण्ड्यजनों ने सिंहल में प्रव्रजन करके वहां भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रसार किया था। यहां के शूरसेन कृष्ण जन यदुवंशी थे तथा आठवीं-सातवीं शती ईसापूर्व में पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। मेगस्थनीज के यात्रा विवरणों10 में इनका उल्लेख मिलता है। ग्रीक व्यापारी अपने व्यापारिक उद्देश्य से यहां के पतनों का निरन्तर उपयोग किया करते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार प्लिनी11 ने प्रथम शताब्दी ईसवी में इनका विवरण दिया है। यहां के राजन का निर्वाचन किया जाता था। वस्तुतः सिंहल और पाण्ड्य संघ महाजनपद अधिक समृद्ध और विकसित एवं आत्मविद्या (जैन धर्म) में अधिक उन्नत प्रतीत होते हैं, जबकि उत्तर भारत के अनेक प्राच्य महाजनपद आर्यों की विजय के कारण विदेशीय हिंसा और शोषण का शिकार रहे। 12. सिन्धु-सौवीर महाजनपद- ब्रह्मार्यों के आक्रमण के पूर्व यह क्षेत्र महत्वपूर्ण जनराज्य था। यहां यदु-तुर्वस जनपद विद्यमान थे। सिकन्दर के आक्रमण के पूर्व इस क्षेत्र में अनेक जनपद मौजूद थे। ग्रीक इतिहासकारों ने इस क्षेत्र के पाण्डियन जनपदों का उल्लेख किया है, जिन्होंने मेसीडोनियन आक्रमण के समय अनेक संघ महाजनपद स्थापित कर लिए थे जिनके प्रमाण भगवती सूत्र और उत्तराध्ययन सूत्र से प्राप्त होते हैं। सिन्धु-सौवीरों का सर्वोच्च नेता उदयन था जिसकी राजधानी वीतभय पाटननगर थी। उसके अन्तर्गत 363 नगर और सोलह संघ जनपद थे। तीर्थकर महावीर अंग संघ महाजनपद की राजधानी चम्पा से 553 ईसापूर्व में, विशेषतया स्वयं वीतभयपाटन नगर श्रमण धर्म का उपदेश करने के लिये गए थे। ग्रीक आक्रमण होने तक यह एक शान्तिपूर्ण महाजनपद था। 13. गांधार संघ महाजनपद- गांधार संघ महाजनपद के अन्तर्गत कश्मीर घाटी क्षेत्र और तक्षशिला महानगर क्षेत्र भी आता था। गांधार का सविस्तार विवरण ऋग्वेद और अथर्ववेद में आया है। गांधार संघ जनपद को नौवीं शती ईसा पूर्व तक ब्राह्मण महाजनपद से पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हो गई थी तथा उसके जननेता एवं कर्णधार पार्श्वमार्गी जैन श्रमण हो गये थे। महा जनपद युग में इस महाजनपद का सवोच्च नेता पुखसती था जो ईसापूर्व 544 में विद्यमान था और बिम्बिसार का समकालीन था। उसने छठी शती ईसापूर्व के उत्तरार्ध में बिम्बिसार के राजदरबार मं अपना राजदूत भी भेजा था। 14. कम्बोज संघ महाजनपद- कम्बोज संघ महाजनपद और गांधार संघ महाजनपद दोनों का भारतीय साहित्य और शिलालेखों में विस्तार से उल्लेख प्राप्त होता है। ये भारत के सुदूर उत्तर में स्थित उत्तरापथ में विद्यमान थे। इसके अन्तर्गत राजौरी (प्राचीन राजपुरा) के चतुर्दिक स्थित क्षेत्र आता था जिसमें पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त स्थित हजारा जिला तथा काफिरिस्तान तक का क्षेत्र आता है। इस महाजनपद के विषय में ऐतिहासिक प्रमाण भी प्रचुरता से प्राप्त हुए हैं। इस महाजनपद को सदैव और समय-समय पर विदेशी आक्रमणों की भारी मुसीबतें उठानी पड़ी। 15. अंगसंघ महाजनपद- अंगक्षेत्र मगध के पूर्व और राजमहल पहाड़ियों के पश्चिम में स्थित था। यह चम्पा नदी द्वारा, जिसका वर्तमान नाम संभवतः चन्दना 10. मेगस्थनीज के यात्रा विवरण। 11. प्लिनी-सिंहासन संघ महाजनपद का विवरण।
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy