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________________ अनेकान्त/ है, मगध से पृथक्कृत है। इस महाजनपद की प्राद्धि राजधानी चम्पा ही थी जो गंगा और चम्पा के संगम पर स्थित थी। वर्तमान चम्पा नगर और चम्पापुरा प्राचीन राजधानी स्थल पर विद्यमान हैं। ___ अथर्ववेद में अंगों, गांधारियों, मूजवन्तों और मागधों के विस्तृत उल्लेख मिलते हैं। दधिवाहन को इस महाजनपद का सर्वोच्च नेता माना जा सकता है, जिसका उल्लेख ब्राह्मण और जैन साहित्य दोनों में मिलता है। वह छठी शती ईसापूर्व के मध्य में हुआ था तथा मगध के बिम्बिसार और अजातशत्रु दोनों का तथा वत्सों के शतानीक का समकालीन था। अंग संघ महाजनपद शान्तिप्रिय जैनधर्मी महाजनपद बना, किन्तु उसे अपने परम सहयोगी एवं भ्रातृतुल्य संघ महाजनपदों का कोपभाजन बनना पड़ा था। बिम्बिसार के युग में उसे मगध का अभिन्न अंग बना लिया गया। ___16. वंग संघ महाजनपद- पुरातनवादी युनानी लेखकों के विवरणों से ज्ञात होता है कि नन्दवंशी धननन्द के काल से ही वंग मगध महाजनपद का भाग रहा था। बोधायन ने वंगक्षेत्र को अशुद्ध क्षेत्र माना है। पतंजलि ने उसे आर्यावर्त से पृथक् स्थान दिया है। किन्तु वस्तुतः जैन आगम के अनुसार, वंगसंघ महाजनपद तत्कालीन सोलह संघ महाजनपदों में सम्मिलित था तथा स्वतन्त्र जनपद था। यह विशुद्ध श्रमणधर्म का पोषक था। उस समय यज्ञवादी ब्राह्मण संस्कृति विदेह से आगे नहीं पहुंच पाई थी। __महाजनक जातक से भी इसका विवरण मिलता है। यहां के पणि और अन्य व्यापारी व्यवसाय के लिए स्वर्णभूमि तक जाया करते थे। इन उपर्युक्त सोलह महाजनपदों के अतिरिक्त, अनेकों स्वतन्त्र संघ जनपद भी विद्यमान थे जो कुछ समय तक शान्तिपूर्वक परस्पर सहयोग से रहे। इन संघ जनपदों में कुरुसंघ जनपद, पांचाल संघ जनपद आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। स्थानीय जनपदों में, बनिया ग्राम जनपद, पोलसपुरा जनपद, आलम्बिका जनपद, ऋषभपुरा जनपद, कनकपुरा जनपद, वर्धमान जनपद आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। इस युग में (विशेषतया 600 ईसा पूर्व से 173 ईसा पूर्व तक) सम्पूर्ण भारत वस्तुतः महाजनपद भारत बन गया था। उस अवधि पार्श्व-बुद्ध-महावीर-युग में श्रमण धर्म का पुररुत्थान और पुररुद्धार हुआ था और श्रमणधर्मी राजनैतिक-सामाजिक पद्धति (जनपद व्यवस्था) का प्रत्यास्थापन हुआ था। उस काल के इतिहास में गणपदों का अस्तित्व नगण्य था। धीरे-धीरे जनपद अनेक कारणों से अपेक्षाकृत अधिक विशाल रूप धारण करने लगे। शनैः शनैः मत्स्यन्याय के सिद्धान्त के आधार पर, बड़े जनपद छोटे जनपदों को निगलने लगे और छोटे जनपद बड़े जनपदों में विलीन होने लगे। यह सम्पूर्ण जनपद और महाजनपद व्यवस्था श्रमणिक थी। ____ अजातशत्रु के शासनकाल के अन्त 486 ईसा पूर्व तक वल्जी, मल्ल, कौशल और वत्ससंघ महाजनपदों की दशा बिगड़ गई तथा उनके अनेक भाग मगधसंघ महाजनपद में शामिल कर लिए गए तथा धीरे-धीरे 173 ईसा पूर्व तक तो स्थिति सर्वथा बेकाबू हो गई और तत्पश्चात् सर्वत्र एकराट्, धर्मराट् तथा सम्राट् महाजनपदों का वर्चस्व और आधिपत्य हो गया। -233 राजधानी, ऐन्क्ले व, शकूरबस्ती, दिल्ली-110034
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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