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अनेकान्त/5 है। डॉ. राजबली पाण्डेय ने भी इनका विवरण दिया है। वस्तुतः सम्पूर्ण भारत में महाजनपदों की पुनर्स्थापना हो चुकी थी, जो सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य महान के राज्यकाल तक चलती रही।
पार्श्वनाथ (877 ईसा पूर्व से 777 ईसा पूर्व) से श्रमण संस्कृति का पुनरुत्थान युग प्रारंभ होता है, जिसका भावी इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़ा तथा भारत
और संसार भर में आध्यात्मिक पुन:रुत्थान तथा प्रत्यास्थापन हुआ। उनका काल प्राचीन भारतीय श्रमण संस्कृति का पुनर्जागरण काल या उपनिषदकाल का आरंभ भी माना जाता है जिसका श्रमण एवं ब्राह्मण दोनों संस्कृतियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। सोलह संघ-महाजनपद प्राच्य परिक्षेत्र 1. वृज्जी संघ-महाजनपद 2 काशी संघ-महाजनपद 3. कौशल संघ-महाजनपद 4. मल्ल संघ-महाजनपद 5. अवन्ती संघ-महाजनपद 6. वत्स संघ-महाजनपद 7. शूरसेन संघ-महाजनपद 8. मगध संघ-महाजनपद दक्षिणात्य परिक्षेत्र 9. अश्वक संघ-महाजनपद 10. पाण्ड्य संघ-महाजनपद 11 सिंहल संघ-महाजनपद उदीच्य परिक्षेत्र 12 सिन्धु-सौवीर संघ-महाजनपद 13 गान्धार संघ-महाजनपद 14 कम्भोज संघ-महाजनपद सुदूर प्राच्य परिक्षेत्र 15. अंग संघ-महाजनपद 16. वंग संघ-महाजनपद
1. वृज्जी संघ-महाजनपद- वृज्जी संघ-महाजनपद तीर्थकर पार्श्वनाथ का अनुयायी था। उसकी सीमायें गंगा के उत्तर से नेपाल तक व्याप्त थीं। यह आठ जनपदों का समाहित महासंघ था। इसकी राजधानी वैशाली थी जो कि लिच्छिवि संघ की भी राजधानी थी। इस संघ महाजनपद के बन जाने से सारे देश में अनुकूलता की लहर फैल गई थी। इसके परम सर्वोच्च नेता एवं सेनापति महाराजा चेतक थे जिनके राजदूत सब महाजनपदों में नियुक्त थे और जिनके साथ उन्होंने वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किये थे। उनकी पुत्री प्रभावती का विवाह 7. डॉ. राजवती पाण्डेय 8. History of Ancient Maha Janpad Bharat 1997, (1100 B.C. to 173 B.C.) Ram Chadra Jain; Arihant Inernational, Gal Kunjas, Darba Kalan, Chandni Chowk, Delht 110006