SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/६ कायकिरियाणियत्ती काउस्सग्गो सरीरगे गुत्ती। हिंसाइणियत्ती वा सरीरगुत्ति ति णिद्दिवा।। नियमसार-७० यह गाथा मूलाचार एव भगवती आराधना मे किचित् शब्द परिवर्तन के साथ उपलब्ध है। यथा कायकिरियाणियत्ती काउस्सग्गो सरीरगे गुत्ती। हिंसादिणियत्ती वा सरीरगुत्ती हवदि एसा।। मूलचार-५/१३६ कायकिरियाणियत्ती काउस्सग्गो सरीरगे गुत्ती। हिंसादिणियत्ती वा सरीरगुत्ती हविद दिट्टा।। भगवती आराधना--११८२.पृ०५९७ ममत्तिं परिवज्जामि णिम्ममत्तिं उवट्टिदो। आलवण च मे आदा अवसेसं बोसरे।। नियमसार-९९ नियमसार की उक्त गाथा कुन्दकुन्द के ही भावपाहुड मे यथावत् रूप मे उपलब्ध है। यथा ममत्तिं परिवज्जामि णिम्ममत्तिमुवट्ठिदो। आलवणं च मे आदा अवसेसाई बोसरे।। भावपाहुड-५७ प्रवचनसार मे नियमसार की गाथा का पूर्वार्ध ज्यो का त्यो मौजूद है। यथातम्हा तह जाणित्ता अप्पाणं जाणगं सभावेण। परिवज्जामि ममत्तिं उवढिदो णिम्ममत्तम्मि।। प्रवचनसार-२/१०८ मूलाचार मे यह गाथा यथावत् प्राप्त है। यथा-- ममत्तिं परिवज्जामि णिम्ममत्तिमुवट्टिदो। आलंवण च मे आदा अवसेसाई वोसरे।। मूलाचार-२/९ आउरपच्चक्खाण तथा महापच्चक्खाण मे उक्त गाथा किचित् भाषागत परिवर्तन के साथ उपलब्ध है। यथा ममत्त परिवज्जामि निम्ममत्ते उवडिओ। आलंबणं च मे आया अवसेसं च वोसिरे।। वीरभद्द, आउरपच्चक्खाण-१६/२४/२८३६ महापच्चक्खाण मे भी देखिएममत्त परिजाणामि निम्ममत्ते उवडिओ। आलंवण च मे आया अवसेसं च वोसिरे।। महापच्चक्खाण-७.५०/१४५०
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy