SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/७ आदा खु मज्झ णाणे आदा में दंसणे चरित्ते या आदा पच्चक्खाणे आदा मे संवरे जोगे।। नियमसार-१०० उक्त गाथा भावपाहुड मे क्रमाक ५८ पर यथावत् रूप से पायी जाती है। समयसार मे भी उसी रूप में उपलब्ध है, किन्तु यहाँ विभक्ति-प्रयोग में कुछ परिवर्तन हुआ है। यथा आदा खु मज्झ णाण आदा मे दंसणं चरितं च। आदा पच्चक्खाणं आदा मे संवरो जोगो।। -समयसार-२७७ (अमृतचन्द्र) समयसार-१८, २९५ (जयसेन) समयसार में जयसेन के पाठ में उक्त गाथा दो बार आई है। मूलाचार मे भी देखिए आदा हु मज्झ णाणे आदा में दसणे चरित्ते य। आदा पच्चक्खाणे आदा में संवरे जोए।। मूलाचार-२/१० (४६) किचित् भाषागत परिवर्तन के साथ उक्त गाथा आउरपच्चक्खाण एव महापच्चक्खाण मे भी प्राप्त होती है। यथा आया हु महं नाणे आया मे दंसणे चरिते य।। आया पच्चक्खाणे आया मे संवरे जोगे।। वीरभद्र/आउरपच्चक्खाण १६/२५/२८३७ महापच्चक्खाण मे “सवरे के स्थान पर “सजमे" पाठ आया है। यथा आया मज्झ नाणे आया में दंसणे चरित्ते य। आया पच्चक्खाणे आया में संजमे जोगे।। महापच्चक्खाण-७/११/१४५१ मरणविभक्ति मे भी देखिए आया पच्चक्खाणे आया मे संजमे तवे जोगे। जिणवयणविहिविलग्गो अवसेसविहिं तु दंसे हं।। मरणविभक्ति-५/२१६/९६५ यहा उक्त गाथा का उत्तरार्ध प्राय पूर्वार्ध से मिलता है।
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy