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________________ अनेकान्त/५ इसकी तुलना मूलाचार की निम्न गाथा से की जा सकती है -- गामे णगरे रण्णे थूलं सचित्त बहु सपडिवक्खं। तिविहेण वज्जिदव् अदिण्णगहणं च तण्णिच्च।। मूलाचार ५/९४ पासुगमग्गेण दिवा अवलोगंतो जुगप्पमाण हि। गच्छइ पुरदो समणो इरिया समिदी हवे तस्स।। नियमसार-६१ इस गाथा की तुलना मूलाचार की निम्न गाथा से कीजिएफासुयमग्गेण दिवा जुगतर प्पेहिणा सकज्जेण। जंतूण परिहरंते णिरिया समिदी हवे गमण।। मूलाचार-१/११ पेसुण्णहासकक्कसपरणिंदप्पप्पससियं वयण। परिचता सपरहिदं भासासमिदी वदतस्स।। नियमसार-६२ इसकी तुलना मे मूलाचार की निम्न गाथा देखिएपेसण्णहासकक्कसपरणिदाप्पप्पसंस विकहादी। वज्जित्ता सपरहियं भासासमिदी हवे कहण।। मूलाचार-१/१२ पासुगभूमिपदेसे गूढे रहिए परोपरोहेण। उच्चारादिच्चागो पइहासमिदी हवे तस्स।। नियमसार-६५ उक्त गाथा की तुलना मूलाचार की निम्न गाथा से कीजिएएगते अच्चिते दूरे गूढे विसालमविरोहे। उच्चारादिच्चाओ पदिठावणिया हवे समिदी।। मूलाचार-१/१५ जा रायादिणियत्ती मणस्स जाणहि त मणोगुत्ती। अलियादिणियत्तिं वा मोण वा होइ वचिगुत्ती।। नियमसार-६९ नियमसार की उक्त गाथा मुलाचार और भगवती आराधना मे यथावत प्राप्त होती है। यहाँ दोनो मूलरूप मे प्रस्तुत है जा रायादिणियत्ती मणस्य जाणहि तं मणोगुत्ती। अलियादिणियत्ती वा मोणं वा होइ वचिगुत्ती।। मूलाचार-५/१३५ जा रागदिणियत्ती मणस्य जाणहि त मणोगुत्ति। अलियादिणियत्ती वा मोणं वा होइ वचिगुत्ती।। भगवती आराधना-११८१/५० ५९५
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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