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________________ आडम्बर में जकड़ा हुआ धर्म राजकुमार जैन (आयुर्वेदाचार्य) आजकल धर्म आडम्बरों में जकडता जा रहा है। समाजकी ओर से समाज के नेताओं के द्वारा कोई भी धार्मिक आयोजन किया जाय उसमें प्रदर्शन, आडम्बर और स्वयं को आगे रखकर अपनी अहमियत प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति ने आत्म कल्याण और धार्मिक भावना को तो गौड बना दिया और आत्मश्लाधा तथा आत्म प्रदर्शन को मुख्य । यह प्रवृत्ति केवल समाज के अग्रणी लोग और नेताओं तक ही सीमित नहीं है, अपितु आत्मकल्याण का उपदेश देने वाले साधुजन और उस उपदेश को सुनने वाले श्रावकगण भी इसमें सहभागी हैं। आजकल समाज में जितना भी आयोजन और प्रदर्शन हो रहा है वह मात्र अहं और उसकी तुष्टि के लिए है। यह वस्तुस्थिति है कि व्यक्ति अपना बडप्पन दिखाने के लिए ही प्रदर्शन करता है और प्रदर्शन की समाप्ति या आयोजन की सफलता के उपरान्त वह अहंतुष्टि का अनुभव करता है। जैनधर्म के प्रचार और प्रसार के नाम पर आज जितने भी आयोजन हो रहे हैं उनमें बड़े बड़े उपदेश दिए जाते हैं और अहिंसा धर्म के पालन एवं अनुरक्षण की बात जोर शोर से की जाती है, किन्तु यह नहीं देखा जाता कि उस आयोजन में ही न जाने कितनी जीव हिंसा हो रही है। एक स्थान पर समुदाय या भीड इकट्ठी होना स्वयं अपने आप में हिंसा का कारण है। क्योंकि जहां भीड़ इकट्ठी होगी वहां असंख्य क्षुद्र जीवों-प्राणियों का मरना अवश्यम्भावी है। अतः समाज के ठेकेदार धार्मिक आयोजन और प्रदर्शन कर स्वयं हिंसा की सामग्री एकत्र करते हैं और उसमें सहभागी बनाते हैं हमारे पूजनीय साधुओं और उनके प्रति अंधश्रद्धा भाव रखने वाले श्रावकों को। ___आज हमारे समाज के दो मुख्य आधार स्तम्भ है- एक साधु और दूसरा श्रावक। हमारा सम्पूर्ण समाज और जैनधर्म इन्हीं दोनों के इर्द गिर्द है। साधु के बिना श्रावक की गति नहीं है और श्रावक के बिना साधु की। जैनधर्म के अनुसार साधु का मुख्य कार्य है आत्मोत्थान या आत्मा का विकास करना, राग-द्वेष एवं अहं भाव से स्वयं को मुक्त रखना तथा सामाजिक प्रपंचों, आडम्बरों और प्रदर्शनों से स्वयं को दूर रखना । श्रावक का कार्य है श्रद्धा और भक्ति भाव पूर्वक धर्माचरण करना, साधुओं के प्रति श्रद्धा और भक्ति रखना तथा धर्म का प्रचार प्रसार करना। इसके विपरीत आजकल साधुजन सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में सम्मिलित होते हैं तथा
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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