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________________ अनेकान्त/13 पड़ेगा इससे अधर्म से बच कर धर्म में प्रवृत्ति करो। यहाँ यह भी जानना जरुरी है कि धर्म क्या है और अधर्म क्या है? जब तक इसका ज्ञान नहीं होगा उस पर चलना भी मुश्किल होगा। व्यवहार निश्चय यदि सापेक्ष्य हैं तो धर्म का मार्ग सरलता से प्राप्त हो जाता है। यदि निर्पेक्ष हैं तो कठिनता आ जाती है । जैन धर्म इस विशेषता को लिये हुए है, जिसका उद्देश्य प्राणि मात्र का कल्याण हो । बुद्धिमान तो रास्ता निकाल लेते है, पर मूर्ख उसमें गड़बड़ा जाता है। वह गड़बड़ा न जाये, सरलता से रास्ता प्राप्त करले इसके लिये व्यवहार निश्चय का उपदेश है जिसने इन्हें नहीं जाना वह मार्ग भटक जायेगा। जिसे इन बुद्धिमानों ने अपनी रोटी कमाने का साधन बना लिया हैं। मूर्ख तो मूर्ख है, इस प्रकार के वातावरण से उकता जाता है जिससे धर्म का पतन होता है, अविनय होती है जिसे बचाना है। अतः रोटी कमाने वालों से नम्र निवेदन है कि अपने स्वार्थ के पीछे धर्म का पतन न करें। अनेकान्त दृष्टि करें तो अच्छा है। ___मैं भी व्यवहार को हेय मानता हूं, पर पाप की तरह हेय नहीं, निश्चय विवेचन करता है मुक्त जीव का तो मुक्त जीव में संसारी जीव से विशेषता तो होना चाहिये, व्यवहार दोनों जीव का विवेचक है। व्यवहार कहता कि संसार में आकुलता है, इसमें सुख नहीं सुखाभास है, यदि तुम सुख चाहते हो तो मुक्त जीव बनो। इस वजह से संसारी जीव को दोनों नय स्थिति अनुसार ग्रहण करने योग्य है ऐसा जैन धर्म का सिद्धान्त है, यही आचार्यों द्वारा कहा गया है। उसे वचन विलास द्वारा झुठलाने की कोशिश मत करो, अन्यथा "जैसी करनी वैसी भरनी"। -सिमरिया बाला अंकुर कालौनी, रजाखेड़ी (सागर) जह जह बहुस्सुओ सम्मओ य सिस्सगणसंपरिवुडो य। अविणिच्छिओ य समये तह तह सिद्धतपडि णीओ।। -सम्मइसुत्त ३/६६ -सिद्धान्त में अनिश्चित (बुद्धिवाला कोई आचार्य) जैसे जैसे बहुश्रुत (पण्डित) माना जाता है और शिष्यवृन्द से घिरता जाता है, वैसे वैसे सिद्धान्त के प्रतिकूल होता जाता है। -डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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