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________________ अनेकान्त/34 विहडइ थरहरइ ण टुककइ उप्परि वालि भडारहों धुदु छुडु परिणियउ कलतु व रइ - दइयहों वडाराहों (जैसे पाप कर्म के वश से दान, शुक्र से मेघजाल वर्षा से कोयल का कलरव, अमित दोषों से कुटुंब का धन, मच्छ से महाकमल, सुमेरू पर्वत से पवन के वेग, दान के प्रभाव से नीति-वचन, वैसे ही भट्टारक बालि के प्रभाव से रावण का विमान रूक गया, उसकी किंकिणियां ऐसे निशब्द हो उठीं मानों सुरति समाप्त होने पर कामिनी मूक हो गई हो। यह बालि महर्षि के ऊपर वैसे ही नहीं जा सक रहा था जैसे नव विवाहिता पत्नी अपने सयाने कामुक पति के पास नहीं जाती।) इसके बाद रावण का विमान नीचे पर्वत पर गिर पड़ा तो कुपित रावण ने कैलाश पर्वत को खोद कर उठा लिया। इस पर पाताल लोक में धरणेन्द्र का आसन कंपित हुआ तो वह ऊपर मृत्यु लोक मे आया और उसने ज्योंहि मुनिराज बालि को नमन किया त्यों ही कैलाश पर्वत नीचे धंसने लगा और रावण कछुए की भांति पिचकने लगा और जोर से चिल्ला पड़ा तो ऐरावत के कुंभस्थल के समान स्तनों वाली रावण की रानियां, केयूर, हार, नूपुर, कंकण वाले अपने दोनों करों को खनखनाकर धरणेन्द्र से रावण के जीवन की भीख मांगने लगी। इस पर द्रवित होकर धरणेन्द्र ने पर्वत को थोड़ा उठाया तो रावण बाहर ऐसे निकला जैसे सिर, हाथ, पाँव समेटकर कछुआ ही पाताल लोक से निकला हो। फिर तो वह सीधे महामुनि बालि के निकट जाकर उनकी स्तुति करने लगा। इसके बाद रावण भरत द्वारा निर्मित जैन मंदिरों के दर्शन करने के लिए गया और जिन देव की पूजा की। उसकी वह पूजा फल फुल्ल समद्धि वणासइ व्व णर दह घूब रवल कुट्टणि व्व वहु दीव समुद्दन्तर महि व्व पेल्लिय - वलि णारायण -मइ व्व घंटारव मुहलिय गय घड व्व मणिरयण समुज्जल अहिं -फड व्व व्हाण वेस केसावलि व्व गन्धुक्कड कुसुमिय पाडलि व्व (वनस्पति की तरह फल फूलों से समृद्ध थी, महाटवी की तरह सावय (श्वापद और श्रावकों) से घिरी हुई थी। दुष्ट कुट्टनी की तरह नरों से दग्ध और कंपित, समुद्र के बीच की धरती की तरह हुत दीप (दिया और द्वीप) वाली, नारायण की बुद्धि की तरह बलि (पूजा की सामग्री) को प्रेरित करने वाली, गजघटा की तरह घंटारव से मुखरित, सांप के फन की तरह मणि और रत्नों से समुज्ज्वल, वेश्या के बालों की तरह स्नान से सहित पाटल पुष्प की तरह गंध से उत्कट और कुसुमित थीं।)
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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