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अनेकान्त/33 छोड़कर हमसे मिलो। परंतु इस संदेश पर बालि ने कोई ध्यान नहीं दिया और दूत ने लौटकर रावण को बताया कि तिण समउ विण गणइ वालि पई (बालि तुम्हें तिनके के बराबर भी नहीं समझता)।
यह सुनकर रावण बालि का मान मर्दन करने के लिए तुरंत वायु मार्ग से अपने योद्धाओं सहित वहां जा धमका और उधर बालि भी सेनाओं के साथ सामने आ डटा। युद्ध में दोनों सेनाएं भिड़ने ही वाली थीं कि किसी विपुलमति मंत्री ने कहा कि आप दोनों को सोचना चाहिए कि स्वजनों के क्षय हो जाने पर राज्य किसका होगा। इस पर रावण व बालि दोनों ही सेनाओं की लड़ाई बंद करने पर रजामंद हो गए और दोनों का द्वन्द्व युद्ध प्रारम्भ हुआ।
रावण ने सर्पिणी विद्या छोड़ी तो बालि ने गरूड विद्या का प्रयोग किया इस पर रावण ने नारायणी विद्या छोड़ी, वह गदा, शंख, चक्र, सारंग औरचार हाथ धारण कर गरूड़ासन पर जाने लगी, तो बालि ने माहेश्वरी विद्या का प्रयोग किया। कराल कंकाल वह, हाथ में त्रिशुल, सिर पर सांप, चंद्रमा और गंगा धारण किए हुए दौड़ी। रावण के पास उसका जवाबी अस्त्र नहीं था, हार गया। बालि ने रावण को रथसहित पकड़ कर सौ बार घुमाकर हथेली पर ऐसे उठा लिया
___णं कुंजर - करेंण कवलु पवरू
णं बाहुबलीसें चक्कहरू (मानों हाथी की सूंड ने अपना कौर उठा लिया हो या बाहुबलि ने भरत चक्रवर्ती को उठा लिया हो)
- इसके बाद वह सुग्रीव को राज्य दे कर गगनचंद नाम के मुनि के पास गया और मुनि दीक्षा लेकर तप करने लगा। तत्काल उसे ऋद्धियां उत्पन्न हो गई और वह कैलाश पर्वत के शिखर पर जाकर वहां स्थित आतापनी शिला पर बैठकर शाश्वत तपस्या में लीन हो गया।
एक मर्तबा जब रावण नित्यलोक नगर के विद्याधर की बेटी रत्नावली से विवाह कर लौट रहा था और महर्षि बालि के ऊपर होकर गुजरने वाला था कि
महरिसि -तव-तेएं थिउ विमाणु णं दुक्किय कम्मवसेण दाणु। णं सुक्के रवीलिउ मेह जालु णं पाउसेण कोइल - वमालु णं दूसामिण कुडम्ब वित्तु णं मच्छे धरिउ महावयंतु णं कंचन सेले पवण गमण णं दाण पहवें णीय भवणु णीसद्धउ हयउ किंकिणीउ णं सुरए समत्तएं कामिणीउ