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________________ अनेकान्त/35 जाहिर है कि यह चिर परिचित भरत-बाबहुली युद्ध तथा कमठ के जीव शम्बर व पार्श्वनाथ धरणेन्द्र के कथानकों का विचित्र रूपान्तरण है। विद्याओं के स्वरूपों के आधार नागराज, गरूड, विष्णु और शिव के रूपों के स्वरूप है और धरणेन्द्र शेषनाग का । जिन पूजा की उपमा में विलासिनी, कुट्टनी, सांप व वेश्या के उपमानों का प्रयोग किया गया है। यह स्वयभू का अपना अलग कला-कौशल है। सारे काव्य को आद्योपान्त पढा जाय तो रामकथा का नया ही रूप सामने आता है। इस महाकाव्य का प्रकाशन सबसे पहले भारतीय विद्या भवन मुंबई से हुआ था। श्री देवेन्द्र कुमार जैन ने अपने 1957 के सस्करण में “दो शब्द" मे लिखा कि 'राम' भारतीय जन मानस की अभिव्यक्ति का लोकप्रिय साधन रहे है, देश मे जब कोई नया विचार संप्रदाय या बोली आई, तो उसने रामकथा के पट पर ही अपने को अकित किया राम कथा पुरानी बनी रही, पर उसकी ओट मे कितनी ही नवीनता साहित्य के वातायन से नवजीवन तक पहुचती रही। -मदाकिनी ऐन्क्लेव नई दिल्ली
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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