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________________ अनेकान्त/19 न हो । यदिमार्ग मे गधे, ऊँट, बैल, हाथी, घोड़े, भैंसे. कुत्ते अथवा कलहकारी मनुष्य हों तो उस मार्ग से दूर हो जाये। मुनि को इस प्रकार गमन करना चाहिए कि जिससे पक्षी तथा खाते-पीते हुए मृग भयभीत न हो ओर अपना आहार छोड़कर न भागे। यदि आवश्यक हो तो पीछी से अपने शरीर की प्रतिलेखना करें। यदि मार्ग में आगे निरन्तर इधर-उधर फल बिखरे पड़े हों या मार्ग बदलता हो या भिन्न वर्णवाली भूमि में प्रवेश करना हो तो उस वर्ण वाले भूमिभाग में ही पीछी से अपने शरीर को साफ कर लेना चाहिए। तुष, गोबर, राख, भुस और घास के ढेर से तथा पत्ते, फल, पत्थर आदि से बचते हुए गमन करना चाहिए। किसी के निन्दा करने पर क्रोध और पूजा करने पर प्रसन्न नहीं होना चाहिए। बालक, बछड़ा, मेढ़क और कुत्ते को लॉघकर न जाये, जिस भूमि में पत्र पुण्य, फल और बीज फैले हों तो उस पर से न जाये, तत्काल लिपी हई भूमि पर न जाये। जिस घर पर अन्य भिक्षर्थी भिक्षा के लिए खड़े हों, उस घर में प्रवेश न करे। जिस घर में कुटुम्बी घबराये हों; उस घर में प्रवेश न करें। जिस घर में कुटुम्बी घबराये हों; उनके मुख पर विषाद और दीनता हो, वहाँ न ठहरें। भिक्षार्थियों के लिए भिक्षा मांगने की भूमि से आगे न जाये। मूलाचार में कहा है कि भिक्षा के लिये चर्या में निकले हुए मुनि गुप्ति (मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति) गुण (मूल और उत्तरगुण) शील, संयम आदि की रक्षा करते हुए और तीन प्रकार के वैराग्य का चिन्तन करते हुए चलते हैं। भिक्षा के लिए निकले हुए मुनि को आज्ञा, अनवस्था, मिथ्यात्वाराधना, आत्मनाश और संयम की विराधना इन पाँच दोषों का परिहार करना चाहिए। सूर्योदय होने पर देववन्दना करने के पश्चात् दो घडी के बीत जाने पर श्रुत भक्ति, गुरू भक्ति पूर्वक स्वाध्याय ग्रहण करके सिद्धान्त आदि ग्रन्थों की वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा औरपरिवर्तन आदि करके मध्याह काल से दो घड़ी पहले श्रुतभक्तिपूर्वक स्वाध्याय समाप्त करे, तत्पश्चात् शरीर के पूर्वापर देखकर, पिच्छिका से परिमार्जन करके, हाथ-पैर आदि का प्रक्षालन करके, मध्याह्नकाल की देववन्दना करे। इसके बाद जब बालक भोजन करके निकलते हैं, काक आदि को बलि भोजन डाला जाता है और भिक्षा के लिए अन्य सम्प्रदाय वाले साधु भी विचरण कर रहे होते हैं तथा गृहस्थों के घर से घुआं और मूसल आदि शब्द शान्त हो चुका हो, इन सभी कारणों से योग्य समय जानकर ही मुनि को आहार के लिए निकलना चाहिए। संकल्पपूर्वक गमन-विधि-मुनि को भिक्षा और भूख का समय जानकर कोई नियम ग्रहण करके ईर्यासमितिपूर्वक ग्राम, नगर आदि में प्रवेश करना चाहिए और भोजन के काल का परिमाण जानकर ग्रामादि से निकलना चाहिए । वृत्तिपरिसंख्यान 1. भ. आ. गा. 1200 की वि. 2. भिक्खा चरियाए प्रण गुत्तीगुणसीलसजमादीणं। रक्तखतो चरदिमुणी विव्वेददिगं च पेच्छंतो।।493 ।। मूलाचार 3. आणा अणवत्थावि य मिच्छत्ताराहणादणासो य। सजमविराहणावि य चरियाए परिहरेदव्या।।4941। मूलाचार 4. मू आ. गा. 0318 की वृ... 5 भ. आ गा 152 की वि. प्र. 195
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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