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अनेकान्त/16
7 सूत्र अदागमो 5 नुस्वारलोपौ च व्यञ्जनस्य, अकारागमो ऽ नुस्वार लोपो __च व्यञ्जनस्य भवति से बना णमो अरहंत। 8 सूत्र षष्टीवत् चतुर्थी, षष्टीवत् चतुर्थी इष्टव्या तथा सागमस्या प्यागमो णो
हो वा, सागमस्या मो ऽनागयस्यापि णकारो भवति हो रा। 9 से बना णमो अरहंतण 10. सूत्र स्वरोऽन्योऽन्यस्य, स्वरोऽन्योऽन्यस्य स्थटर्न भवति से बना =णमो
अरहताण। 11. सूत्र अनुस्वारो बहुलम् अनुस्वारस्य क्सचिल्लोपो भवति क्वचिद् आगमः ___ क्वचित् प्रकृति से बना= णमो अरहताणं।
इस लेख का आधार है सन् 1929 मे सत्यविजय जैन ग्रंथ माला अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित “जैन कवि विरचितम् प्राकृत लक्षणम्" पुस्तक का पृष्ठ 31 परिशिष्ट CD का पाद टिप्पण। इसका लक्ष्य है पाठकों को इस बात से परिचित कराना कि संस्कृत 'नमो अर्हद्भ्यं' का प्राकृत रूप है णमो अरहंताणं । यह मंत्र पद उतना ही प्राचीन हे जितनी प्राकृत भाषा । विशेष विषय है भाषा विदों, भाषा वैज्ञानिकों व वैय्याकरणों के गहन विचार का।
--मंदाकिनी एन्क्लेव
नई दिल्ली
भयाशास्नेहलोभाच्च, कुदेवागमलिंगिनाम्। प्रणामं विनयं चैव, न कुर्युः शुद्धदृष्टयः।।
-समन्तभद्राचार्य -सम्यग्दृष्टि जीव किसी के भय, किसी प्रकार की आशा और किसी प्रकार के लोभ से ग्रसित होकर, अनिष्ट परिहार के लिए कुदेव, कुशास्त्र और कुगुरुओं को प्रणाम नहीं करता और न उनकी विनय ही करता
है।
1. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश के अनुसार चण्ड ई. पू. 2-3 सदी का है और नेमिचन्द्र ने अपने प्राकृत
भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास सन् 1966 पृ. 75 पर चण्ड को मध्य युगीन होना बताया है।