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________________ अनेकान्त/15 ऐसे बना णमो अरहताणं -जस्टिस एम. एल. जैन छठी सदी ईस्वी के वैयाकरण वररूचि ने उनके समय में प्रचलित चार भाषाओं का जिकर किया । वे थी-महाराष्ट्री, मागधी, पैशाची और शौरसेनी। सातवीं सदी के रविषेण ने पदमपुराण में संस्कृत प्राकृत और शौरसेनी का जिकर किया। पंदहरवीं सदी के चण्ड ने लिखा संस्कृतं प्राकतं चैवापभ्रंशो ऽ थ पिशाचिकी। मागधी शौरसेनी च षड् भाषाश्च प्रकीर्तिताः।। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, पिशाचिकी, मागधी, व शौरसेनी ये छह भाषाएं प्रसिद्ध इससे जाहिर होता है कि यह अपभ्रंश का युग चला आ रहा था। आठवीं सदी के प्रथम चरण में लिखे गए स्वयंभूदेव का पउम चरिउ भारत की एक दर्जन अमर रचनाओं में स्थान पाता है। इसलिए चण्ड के समय मे हम कह सकते हैं कि अपभ्रंश समुन्नत साहित्यिक भाषा थी। उस समय तक उसमें अनेक उत्कृष्ट काव्य रचनाएं हुई होंगी। । खैर, प्राकृत के बारे में वैयाकरण चण्ड का कहना है कि “क्वचिल्लोपः, क्वचित्सन्धिः, क्वचिद्वर्णविपर्ययः आगमो ऽअन्तादि मध्येषु लक्ष्यं स्यात् तनु भाषितम् । उसके अनुसार प्राकृत तीन प्रकार की थी-संस्कृतयोनि (तद्भव) संस्कृतसम (तत्सम) और देशी। देशी प्राकृत अनेक प्रकार की थी। इसी सिलसिले में चण्ड ने संस्कृत के नमो ऽर्हत् से णमों अरहंताणं बनने की प्रक्रिया निम्न प्रकार बताई है। 1 सूत्र तवर्गस्य चटवर्गों से न का ण होकर बना=णमः अर्हत्। 2 सूत्र एदोद्रलोपा विर्जनीयस्य, एत् ओत्, र लोपा विर्जनीयस्य से विसर्ग का लोप होकर बना=णम ओ अर्हत् । 3 सूत्र स्वराणां स्वरे प्रकृति लोप सन्धयः से अ का लोप होकर रहाणम् __ ओ अर्हत् जिसका स्वरसंधि होकर बना-णमो अर्हत्। 4 वर्ण विश्लेष करने पर 'ह' का 'ह' होने से बना=णमो अहत् 5 सूत्र संयोगस्येष्ट स्वरागमो मध्ये द्वयो य॑जनयो मध्ये इष्ट स्वरागमो ___भवति से बना-णमोअरहत् । 6. सूत्र अनुस्वारो बहुलम् से बना=णमो अरहन्त ।
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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