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________________ अनेकान्त/२५ अशुद्ध आहार से तो शरीर की रक्षा होती ही है, उदर में संचित दोषों और विकारों का शमन भी होता है। उपवास के द्वारा शारीरिक आरोग्य सम्पादन के साथ-साथ आत्मा को बल और अन्त करण को निर्मलता प्राप्त होती है। उपवास को आयुर्वेद में 'लघन' कहा जाता है। अनेक रोगों के शमनार्थ लंघन की उपयोगिता सुविदित है। ज्वर मे सर्वप्रथम लंघन का निर्देश दिया गया है। अजीर्ण, अतिसार, आमातिसार, आमवात तथा श्लेष्माजनित विभिन्न विकारो मे लंघन का स्पष्ट निर्देश दिया गया है। विभिन्न रोगो में लंघन का निर्देश यद्यपि स्पष्टत विकारोपशमन के लिये किया गया है और उपवास के साथ उसका कोई तादात्म्य भाव नही है, तथापि दोनो की प्रकृति एक समान होने से दोनों में निकटता तो है ही । इसके अतिरिक्त लंघन के द्वारा जब विकाराभिनिवृत्ति होती है तो उस प्रकृति स्थापन एवं शुद्धिकरण की प्रक्रिया का पर्याप्त प्रभाव मानसिक स्थिति पर पड़ता है और मन में विकारो के प्राबल्य में निश्चित रूप से कमी होती है। उपवास का प्रयोजन भी अन्त करण की शुद्धि करना है। लंघन के पीछे यद्यपि धार्मिक प्रवृत्ति या आध्यात्मिक भाव नहीं होता है, तथापि विवेक एव नियमानुसार उसका भी आचरण किया जाय तो विकारोपशमन के साथ-साथ उपवास का फल भी अर्जित किया जा सकता है। उपवास के द्वारा तो निश्चय ही आध्यात्मिक रूप से पुण्य फल की उपलब्धि के साथ-साथ शारीरिक व मानसिक स्वस्थता प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त एक तथ्य यह भी है कि लंघन के द्वारा आरोग्य लाभ होता है जो व्यवहारज स्वास्थ्य कहलाता है। यह व्यवहारज स्वास्थ्य पारमार्थिक स्वास्थ्य की लब्धि मे सहायक साधन है, अतः आध्यात्मिक निःश्रेयस् की दृष्टि से लंघन भी एक उपयोगी एवं महत्वपूर्ण साधन है। आध्यात्मिक अभ्युन्नति, आत्मकल्याण तथा अन्त करण की शुद्धि की दृष्टि से जैनधर्म में दसलक्षण धर्मों का विशेष महत्व है। दस लक्षण धर्मों में त्याग धर्म को अन्तःकरण की शुद्धि तथा आत्म कल्याण हेतु विशेष उपयोगी एव महत्वपूर्ण निरूपित किया गया है। उत्तम त्याग धर्म के अन्तर्गत गृहस्थजनों के लिए चार प्रकार का दान बतलाया गया है। जिसमें एक औषधि दान भी है। जैन धर्म मे अन्य दानों की भाति औषध दान की महिमा भी बतलाई गई .
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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