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अनेकान्त/19
दृष्टव्य है कि समानाक्षरी छन्दों के सभी भेदों का प्रयोग करके माता ज्ञानमति जी ने अपने छन्द शास्त्राधिकार का उद्घोष किया है। आगे-आगे के स्तोत्रो में बढते हुए अक्षरों वाले छन्दों का प्रयोग हुआ है। जैसा कि श्री पद्म प्रभु जिन स्तोत्र में नौ अक्षरी हलमुखी, भुजग, शिशुभृता, दस अक्षरी शुद्ध विराट एवं पणव छन्दो का प्रयोग किया है। इस स्तोत्र के अन्तिम पाच श्लोक आर्या गोति छन्द के हैं। श्री सुपार्श्व जिन स्तोत्र में दस अक्षरी मयूर सारिणी, रूकूमवती, मत्ता, मनोरमा, मेघ वितान मणिराग, चंपक माला एव त्वरित गति छन्दों के प्रयोग के साथ-साथ अन्त में अनुष्टुप् छन्द प्रयुक्त हुआ है।
श्री चन्द्र प्रभ जिन स्तोत्र में अन्तिम अनुष्टुप् को छोड कर उपस्थिता, एक रूप, इन्द्र वज्रा, उपेन्द्रवजा उपजाति, समुखी एव ढोधक सभी ग्यारह अक्षरी छन्द समुदाय का प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार श्री पुष्पदन्त जिन स्तोत्र मे भी अन्तिम अनुष्टुप् छन्द को छोड कर सभी शालिनी, वार्तो ों, भ्रमार विलसित, स्त्री एव रथोद्धता आदि ग्यारह अक्षर वाले छन्दो के भेदो को अपनाया गया है।
श्री शीतल जिन स्तोत्र में भी ग्यारह अक्षरी स्वागता, पृथ्वी, सुभीद्रका वैतिका मौक्तिमाला एव उपस्थित छन्दो के साथ-साथ बारह अक्षरी चन्द्रवर्म, वंशस्थ एव इन्द्रवंशा, छन्दों के साथ-साथ अन्त मे अनुष्टुप् का प्रयोग हुआ है। श्री श्रेयांस जिन स्तुति में अनुष्टुप् के अन्तिम दो पद्यो के अतिरिक्त द्रुत विलम्बित, पुट, तोटक है। वासुपूज्य जिन स्तुति मे भी आर्य गीति के दो तथा अनुष्टुप् के एक छन्द के साथ साथ सभी बारह अक्षरी जलधर माला, नव मालिनी प्रभा छन्दों को अपनाया गया है। श्री विमल जिन स्तोत्र मे आर्धागोति एव अनुष्टुप् के एक-एक पद्य के साथ-बारह अक्षर वाले तामरस, भुजग प्रयात सावित्री, मणि माला एव प्रमिता क्षर, छन्दों का प्रयोग हआ है।
श्री अनन्त जिन स्तोत्र मे अन्तिम अनुष्टुप् के साथ-साथ बारह अक्षर वाले जलोद्धत गति, प्रियवदा एव ललिता तथा तेरह अक्षर वाले क्षमा, एव प्रहर्षिणो छन्दों का प्रयोग हुआ है।
श्री धर्म जिन स्तुति में सभी छन्द- अति रुचिरा, चचरीकावली, मंजु भाषिणी, मत्तमयूर, अनुष्टुप् और चन्द्रिका तेरह अक्षर वाले है। श्री शान्ति जिन स्तोत्र में अनुष्टुप् में निबद्ध दो पद्यों को छोडकर सभी पद्य बसन्त तिलका (प्रारम्भिक तीन पद्य) असं वाधा अपराजिता और प्रहरण कलिका चौदह अक्षर वाले हैं। इसी प्रकार कुन्थनाथ जिन स्तुति करते हुए कवियत्री के द्वारा प्रथम पद्य में चौदह अक्षर वाले इन्दु वन्दना छन्द का प्रयोग करने के पश्चात् अन्य पन्द्रह अक्षर वाले शशिकला मालिनी, चन्द्रलेखा एवं प्रभद्रक का प्रयोग किया है। स्तोत्र का पांचवा पद्य अनुष्टुप
अरनाथ जिन स्तोत्र में छठा पद्य अनुष्टुप् का है। शेष पद्यों में पन्द्रह अक्षर वाले सक, मणिकुण निकर, काम क्रीडा एवं एला छन्द का प्रयोग हुआ है। साथ-साथ इस स्तोत्र में सोलह अक्षर वाले ऋषभ गज विलसित और वाणिनी छन्दों का भी काव्य रचना में आश्रय लिया गया है।