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________________ अनेकान्त/18 है उसे प्रयुक्त कर देती है। कवियित्री छन्दों के पीछे नहीं भागती अपितु छन्द ही इनके पीछे भागते प्रतीत होते हैं। कल्याण कल्पतरू स्तोत्र मे चौबीस तीर्थकरों की स्तुतियों में विविध प्रकार के छन्दो का प्रयोग किया गया है। एक-एक तीर्थंकरो की स्तुति मे भी छन्द वैविध्य है। श्री वृषभ जिन की स्तुति से ग्रन्थ प्रारम्भ हुआ है। अकेले ऋषभ जिन की स्तुति मे ही 16 छन्दो का प्रयोग हुआ है। एकाक्षरी श्री छन्द- जिसके प्रत्येक चरण में एक-एक गुरु होता है- से स्तुति प्रारम्भ हुई है। यथा- ऊ, मां। सोऽव्यात्।।1।। इस एकाक्षरी श्री छन्द मे अपने मे पूर्ण एक श्लोक निर्माण करना कितना कठिन है। इस तथ्य का अनुमान केवल कविजन ही कर सकते हैं। इसी प्रकार इसी स्तुति में दो अक्षरी स्त्री छन्द-जैनी वाणी। सिद्धिं, दद्यात् का प्रयोग किया गया है। तीसरे पद्य में 3 अक्षरी कैसा छन्द, चौथे श्लोक में तीन अक्षरी मृगी छन्द, पांचवे श्लोक मे तीन अक्षरी नारी छन्द, छठे श्लोक मे 4 अक्षरी कन्या छन्द, सातवे श्लोक में 4 अखरी व्रीडा छन्द, आठवें श्लोक में 4 अक्षरी लासिनी छन्द, नौवे श्लोक में चार अक्षरी सुमुखी छन्द, दसवें श्लोक मे चार अक्षरी सुमुखी छन्द, ग्यरहवे श्लोक मे छह अक्षरी शशि वदना छन्द चौदहवे श्लोक में सात अक्षरी मदलेखा छन्द, पन्द्रहवे, सोलवें, सत्रहवें, अठारहवें, उन्नीसवे तथा बीसवें श्लोक में अनुष्टुप छन्द । जिसके चारो चरणो में पाचवा अक्षर लघु, छठा अक्षर गुरु हो तथा जिसके प्रथम व, तीसरे चरण मे सातवां अक्षर दीर्घ हो तथा दूसरे और चौथे चरण का सातवाँ वर्ण लघु हो- का प्रयोग हुआ है। इक्कीसवें पद्य में उन्नीस अक्षरी शार्दूल विक्रीडित छन्द का प्रयोग किया गया है। एक ही स्तुति में इस प्रकार छन्दो का वैविध्य कवियित्री के छन्द शास्त्र के असाधारण वैदुष्य का परिचायक है। इसी प्रकार अन्य स्तोत्रों मे छन्दों की विभिन्नता, दृष्टिगोचर होती है। श्री अजित जिन स्तोत्र मे पाच अक्षरी प्रीति राती व मन्द्रा छन्द, छह अक्षरी तनुमध्या एवं सावित्री छन्दों के प्रयोग के साथ अनुष्टुप् एवं मालिनी छन्दों का प्रयोग हुआ श्री सम्भव जिन स्तुति में छह अक्षरी नदी, मुकुल, मासिनी, रमणी, वसुमती, सोमराजी छन्दो के प्रयोग के साथ-साथ सात अक्षरी मदलेखा, अनुष्टुप एवं दोथक छन्दों का प्रयोग किया गया है। श्री अभिनन्दन जिन स्तुति में सात अक्षरी कुमार ललिता, मधुमती, हंस माला चूडामणि छन्दों के प्रयोगों के साथ-साथ आठ अक्षरी प्रामाणिक अनुष्टुप एवं अन्तमें ग्यारह अक्षरी उपजाति छन्द का प्रयोग हुआ है। श्री सुमति जिन स्तुति में आठ अक्षरी चित्रपदा, विद्युन्माला, माणवक इस स्तम्, नागरक, नाराचिका, समानिका, प्रमाणिका, वितान छन्दों के प्रयोग के साथ-साथ मात्रिक छन्द आर्य जाति जिसके प्रथम एवं तृतीय चरण में बारह-बारह मात्राएं और द्वितीय और चतुर्थ चरण में बीस-बीस मात्राएं हों- का प्रयोग किया गया है। अन्त में आठ अक्षरी अनुष्टुप् छन्द का प्रयोग हुआ है।
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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