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________________ अनेकान्त/17 के भाव, भाषा शैली सभी अत्यन्त मनो मुग्ध कारी है। इस ग्रन्थ में चौबीस तीर्थंकरों की स्तुतियाँ पाठको के हृदय में भक्ति भाव को उत्पन्न करती है। स्तोत्र ग्रन्थों में देवताओं को स्तुतियॉ देवों के महत्व वर्णन के साथ-साथ भक्तों के दैन्य प्रदर्शन को भी प्रदर्शित करती है। साथ-साथ देवों से भक्त को आत्म के सुख याचना भी वर्णित की जाती है। तदनुसार इस स्तोत्र ग्रन्थ में भी पंच कल्याणको के वर्णन द्वारा जिनेन्द्र देवो को प्रभुता, महत्ता, प्रताप आध्यात्मोत्कर्ष तथा उनका जीवन परिचय दिया गया है। कवियित्री के द्वारा आत्म कल्याणार्थ पद-पद पर उनसे मोक्षपद की याचना की गई है। महापुराण व उत्तर पुराणों के आधार पर तीर्थकरो के माता पिता के नाम उनको जन्मनगरी पंच कल्याणको की तिथियाँ उनकी शारीरिक ऊचाई. शरीर का वर्ण, उनका वंश तथा उनकी आयु का प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत किया गया है। कल्याण कल्पतरू स्तोत्र शान्तरस प्रधान काव्य है। ग्रन्थ का भक्ति-भाव सहित पाठ करने से भक्त के हृदय मे स्थित निर्वेद स्थायी भाव रस पदवी पर पहुच कर हृदय मे शान्त रस का अनुभव कराता है। काव्य के काव्यत्व का परीक्षण उसमे निहित रस द्वारा ही होता है। इस ग्रन्थ में शान्त रस का पूर्ण परिपाक हुआ है। अतः इस ग्रन्थ के भाव पक्ष का परीक्षण करने से इसकी उत्कृष्ट काव्यता स्वतः सिद्ध हो जाती है। कल्याण कल्पतरू स्तोत्र में माधुर्य गुण का प्राचुर्य है। शान्त रस में माधुर्य गुण का समुत्कर्ष उसकी अनुभूति को और अधिक तीव्र कर देता है। माधुर्य गुण के साथ-साथ प्रसाद गुण का सद्भाव भी ग्रन्थ को स्पष्ट बोधकता मे सहायक बन रहा है। वैदर्भी वृत्ति ग्रन्थ के काव्यत्व के सौन्दर्य को अधिक बढ़ा रही है। इस ग्रन्थ में अलकारो का प्रयोग बहुत ही स्वाभाविक रूप से हुआ है। भक्ति के प्रवाह मे बहकर अलंकार स्वतः ही काव्य के अग बन गए हैं । भक्ति भावना में लीन कवियित्री के शब्दार्थ में अलकार स्वतः प्रविष्ट होकर शब्दार्थ की चारूता के हेतु बन गए है। शब्दार्थालंकारों के प्रयोग से काव्य के भाव स्वत अलंकृत हुए है। श्री वृषभ जिन स्तोत्र में प्रयुक्त अनुप्रासालंकार दृष्टव्य हैपू: सांकेता, पूता जाता, त्वत्प्रसूतेःसा। श्री वृषभ जिन स्तोत्र में ही रूपालकार की छटा देखिएहाटक वर्ण, सद्गुणपूर्णम्। सिद्धिबधूस्त्वां, सा स्म वृणीते इस प्रकार के आलांकरिक उदाहरण ग्रन्थ में सर्वत्र बिखरे हुए है। कल्याण कल्पतरू स्तोत्र का सर्वाधिक काव्य वैशिष्टय उसकी छन्दों योजना में है। ग्रन्थ में निहित छन्दों का वैविध्य और प्राचुर्यता कवियित्रि के छन्द शास्त्र पर पूर्णाधिकार को प्रकट कर रहा है। ग्रन्थ में प्रयुक्त छन्दो की विविधता इस ग्रन्थ को अन्य काव्य ग्रन्थों से बहुत ऊपर उठा देती है। कभी कभी तो छन्दों का वैविध्य इसके छन्दोंग्रन्थ होने की भ्रान्ति उत्पन्न कर देता है। छन्द शास्त्र पर कवियित्री का इतना अधिक अधिकार है कि जिस अवसर पर जो भी छन्द चाहती
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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