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________________ अनेकान्त/16 कल्याण कल्पतरू स्तोत्र में छन्दोवैदृष्य -श्री प्रकाशचन्द्र जैन, प्राचार्य अपनी आत्मा के कल्याण के लिए जैन शास्त्रोक्त आर्यिका पद की मर्यादा को निर्दोष रीति से पालन करने वाली, साध्वियों में अग्रगण्य, आगमों में वर्णित जम्बूद्वीप को प्रत्यक्ष रूप से जन-जन के नेत्र गोचर कराने की प्रेरणा तथा मार्ग दर्शन प्रदान करने वाली, विद्या प्रकाश से निर्मल अन्त करण वाली, सरस्वती के समान अज्ञानान्धकार को दूर करके जगत् को स्वच्छ ज्ञानालोक मे प्रतिष्ठित कराने के लिए सदैव प्रत्यनशील गणिनी, तपस्विनी माता ज्ञानमती जैन समाज की बहुमूल्य निधि है। त्याग और विद्या की आधारभूत इस विदुषी साध्वी को प्राप्त कर जैन समाज का सौभाग्य अत्यन्त प्रकाशित हो रहा है। ज्ञान-ध्यान एवं तप मे लीन गणिनी माता ज्ञानमति तीन तीर्थकर भगवान् शान्तिनाथ, कुन्थनाथ एव अरहनाथ के जन्म से पवित्र अतिशय क्षेत्र हस्तिनापुर में विराजमान होती हुई भी सम्पूर्ण भारत की भूमि को अपनी चरणरज से पवित्र करती हुई जैन शासन की प्रभावना के लिए सतत विहार शील है। निरन्तर शास्त्र स्वाध्याय, नित्य नवीन मौलिक ग्रन्थो की रचना, प्राचीन दुर्बोध कठिन ग्रन्थों की व्याख्या, आर्यिका पदाचित दैनन्दिन क्रियाओं का परिपालन, दर्शनार्थियों के लिए सदपदेश प्रवचन ज्ञान श्रावण, सामायिक आदि क्रियाकलापो में लीन माता ज्ञानमति जो अपने जीवन का एक क्षण भी निरर्थक नष्ट नही करती हैं। जहां वे त्याग और विद्वत्ता की अद्वितीय मूर्ति है, वहा प्रतिभा शालिनी साहित्य लेखिका, रस सिद्ध कवियत्री, प्रवचन कला निपूण भी है। इनकी लेखनी से लिखे गए शतअधिक ग्रन्थ इनकी अप्रतिम प्रतिभा को प्रकाशित करते हुए विद्वत् समाज के द्वारा मुक्त कण्ठ से प्रशंसा किए जा रहे हैं । इनकी रचना शैली, अत्यन्त रुचिकर, हृदय ग्राहिणी प्रसाद गुणयुक्त एवं पाठक मन आल्हादिनी है। हिन्दी संस्कृत प्राकृत भाषाओं पर इनका पूर्णधिकार घोषित करती हुई इनकी रचनाएं न केवल वर्तमान काल में अपितु सभी देशों और सभी कालों में उपयोगिनी प्रमेय कमलमार्तण्ड, अष्ट सहस्त्री आदि दुर्बोघ और नीरस न्याय ग्रन्थ इनकी लेखनी का स्पर्श पाकर सुबोध, ललित और जन-जन के हृदय में रुचि बढ़ाने वाले हो गए है। इनकी न्याय ग्रन्थ व्याख्या शैली पाठकों के मस्तिष्क की ग्रन्थियों को खोलकर विषय वस्तु को बिल्कुल स्पष्ट कर देती हैं। माता जी के द्वारा संस्कृत भाषा में रचित कल्याण कल्पतरू स्तोत्र इनके प्रकाण्ड पाण्डित्य, कवित्व तथा इनकी जिनेन्द्र भक्ति का डंका पीट रहा है। इस स्तोत्र ग्रन्थ
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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