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अनेकान्त/20 मल्लिनाथ जिन स्तोत्र में चौथे पद्य में अनुष्टुप् तथा शेष पद्यों में सत्रह अक्षर वाले शिरवरिणी, पृथ्वी, मन्दाक्रान्ता एवं वंशपत्र पतित छन्दों में श्लोक रचना की गई है।
बीसवें मुनि सुव्रत जिन स्तोत्र में चौथे पद्य में अनुष्टुप, प्रथम तथा पांचवे श्लोक में सत्रह अक्षर वाले हरिणी तथा तत्कुटक छन्दों के साथ शेष दो पद्यो में अठारह अक्षर वाले कुसुमितलता वेल्लिता एवं सिंह विक्रीडित छन्द प्रयुक्त है। नमि जिन स्तोत्र मे तीसरा पद्य अनुष्टुप् का है। शेष पद्यो में क्रमशः सत्रह अक्षर वाले कोकिला एव अठारह अक्षर वाले हरनर्तक तथा उन्नीस अक्षर वाले मेघ विस्फूर्जिता छन्द का प्रयोग हुआ है। बाईसवे तीर्थकर भगवान् नेमिनाथ की स्तुति उन्नीस अक्षर वाले शार्दूल विक्रीडित तथा बीस अक्षर वाले भत्तेभ-विक्रीडित सुवदना, वुत्त तथा प्रभदानन छन्द में की गई है। इसमें अन्तिम पद्य अनुष्टुप् है।।
श्री पार्श्वनाथ जिन स्तोत्र इक्कीस अक्षर वाले स्रग्घरा तथा भत्तविलासिनी बाईस अक्षर वाले प्रभद्रक एवं तेईस अक्षर वाले अश्व ललित एवं भत्ता क्रीडा छन्दों में रचा गया है। अन्तिम पद्य अनुष्ट्रप का है।
अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीर की स्तुति में तेईस अक्षरों वाले मयूर गीत, चौबीस अक्षरों वाले तन्वी एवं पच्चीस अक्षरों वाले क्रोचपदा छन्दों में की गई हैं इसमें तन्वी छन्दो के तीन पद्य है, तथा अन्तिम दो पद्य अनुष्टुप् के है। कितना आश्चर्य कारी छन्दो का विचित्रालय है यह कल्याण कल्पतरू स्तोत्र काव्य? आर्यिका रत्न माता ज्ञानमतीजी ने इस स्तोत्र की रचना में कितना ध्यान तथा श्रम लगाया
इसके अतिरिक्त इस ग्रनथ मे चौबीस तीर्थकरों की अलग-अलग स्तुति करने के बाद अन्त मे चतुर्विशति जिन स्तोत्र, वश स्तुति, वर्ण स्तुति, निर्वाण स्तुति व पच बालयति तीर्थकर स्तुतियां भी रची गई है। इन चारों प्रकरणो मे भी छन्द वैविध्य कवियित्री के छन्दों वैदुष्य का अद्भुत नमूना है।
चतुर्विशति जिन स्तुति में अनुष्टुप् वंश स्तुति के दो पद्य सोलह अक्षरी अपवाह छन्द के, दो पद्य छब्बीस अक्षरों भुंजग विजृम्मित छन्द के हैं | वर्ण स्तुति तथा निर्वाण स्तुतियो में सत्ताईस अक्षरी चण्डवृष्टि प्रयात दण्डक, प्रचतिक दण्डक छन्दों का प्रयोग हुआ है। बालयति स्तुति में तीस अक्षर वाले अर्णो दण्डक के प्रयोग के साथ-साथ अनुष्टुप् छन्द को भी लिया गया है।
उक्त स्तुतियों में प्रदर्शित छन्दो के वैविध्य को जान कर पाठक स्वतः कवियित्री के छन्दों के अगाध ज्ञान को समझ सकते हैं। पूरे ग्रन्थ में 140 छन्दों का प्रयोग हुआ है। ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें स्तुतियों में प्रयुक्त छन्दो में लक्षण भी साथ-साथ दिए गए हैं। छन्द शास्त्र के जिज्ञासु पाठकों के लिए यह रचना वस्तुतः कल्प वृक्ष है। एक ओर तो जिनेन्द्र गुण गायन दूसरी ओर छन्द शास्त्र का विस्तृत ज्ञान इस ग्रन्थ में पद पद पर सुलभ है।
भगवद् भक्तों की भक्ति भावना की पूर्ति के साथ-साथ यह ग्रन्थ छन्दों के ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है।