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अनेकान्त/12 जो सर्वधर्मभाव के चिन्तन से अनुप्राणित है। उसमे लोकहित, लोकसंग्रह और सर्वोदय की भावना गर्भित है। धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को दूर करने का अभेद्य अस्त्र है। दूसरे के दृष्टिकोण का अनादर करना और उसके अस्तित्व को अस्वीकार करना ही संघर्ष का मूल कारण होता है। ससार में जितने भी युद्ध हुए हैं उनके पीछे यही कारण रहा है। अतः संघर्ष को दूर करने का उपाय यही है कि हम प्रत्येक व्यक्ति और राष्ट्र के विचारों पर उदारता और निष्पक्षता पूर्वक विचार करें। उससे हमारा दृष्टिकोण दुराग्रही और एकांगी नहीं होगा!
प्राचीन काल से ही समाज शास्त्रीय और अशास्त्रीय विसंवादों से जूझता रहा है, बुद्धि और तर्क के आक्रमणो को सहता रहा है, आस्था और ज्ञान के थपेडो को झेलता रहा है। तब कहीं एक लम्बे समय के बाद उसे यह अनुभव हुआ कि इन बौद्धिक विषमताओं के तीखे प्रहारो से निष्पक्ष और निर्वेर होकर मुक्त हुआ जा सकता है, शान्ति की पावन धारा में संगीतमय गोते लगाये जा सकते हैं और वादों के विषैले घेरे को मिटाया जा सकता है। इसी तथ्य और अनूभूति ने अनेकान्तवाद को जनम दिया और इसी ने सर्वोदयदर्शन की रचना की।
समाज की अनैतिकता को मिटाने तथा शुद्ध ज्ञान और चारित्र का आचरण करने की दृष्टि से अनेकान्तवाद और सर्वोदयदर्शन एक अमोघ सूत्र है। समता की भूमिका पर प्रतिष्ठित होकर आत्मदर्शी होना उसके लिए आवश्यक है। समता मानवता की सही परिभाषा है, समन्वयवृत्ति उसका सुन्दर अबर है, निर्मलता और निर्भयता उसका फुलस्टाप है, अपरिग्रहवृत्ति और असाम्प्रदायिकता उसका पैराग्राफ
अनेकान्तिक और सर्वोदय चिन्तन की दिशा में आगे बढ़ने वाला समाज पूर्ण अहिसक और आध्यात्मिक होगा। सभी को उत्कर्ष में वह सहायक होगा। उसके साधन और साध्य पवित्र होगे। तर्क शुष्कता से हटकर वास्तविकता की ओर बढेगा। हृदय-परिवर्तन के माध्यम से सर्वोदय की सीमा को छुएगा। चेतना-व्यापार के साधन इन्द्रियां और मन संयमित होगे। सत्य की प्रमाणिकता असंदिग्ध होती चली जायेगी। सापेक्षिक चिन्तन व्यवहार के माध्यम से निश्चयतक क्रमशः बढता चला जायेगा स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर, बहिरंग से अन्तरंग की ओर सांव्यावहारिक से पारमाथिंक की ओर, ऐन्द्रयिक ज्ञान से आत्मिक ज्ञान की ओर ।
अनेकान्तवाद और सर्वोदय दर्शन समाज के लिए वस्तुतः एक संजीवनी है। वर्तमान संघर्ष के युग में अपने आपको सभी के साथ मिलने-जुलने का एक अभेद्य अनुदान है, प्रगति का एक नया साधन है, पारिवारिक द्वेष को समाप्त करने का एक अनुपम चिंतन है, अहिंसा और सत्य की प्रतिष्ठा का केन्द्र बिन्दु है, मानवता की स्थापना में नीव का पत्थर है, परस्परिक समझ और सह अस्तित्व के क्षेत्र में एक सबल लेंप पोष्ट है। इनकी उपेक्षा विद्वेष और कटुता का आवाहन है, संघर्षो