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________________ अनेकान्त/6 श्रमण संस्कृति : सर्वोदय दर्शन और पर्यावरण - डॉ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' जैनधर्म श्रमण संस्कृति की आधारशिला है । अहिसा, अपरिग्रह, अनेकान्तवाद और एकात्मकता उसके विशाल स्तम्भ है जिन पर उसका भव्य प्रासाद खडा हुआ है । सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चरित्र और तप उसके सोपान है। जिसके माध्यम से भव्य प्रासाद के ऊपर तक पहुचा जा सकता है । सर्वोदय उसकी लहराती सुन्दर ध्वजा है जिसे लोग दूर से ही देखकर उसकी मानवीय विशेषता को समझ लेते है । समता इस ध्वजा का मेरुदण्ड है जिस पर वह अवलम्बित है और वीतरागता उस प्रासाद की रमणीकता है जिसे उसकी आत्मा कहा जा सकता है । श्रमण संस्कृति की ये मूलभूत विशेषताए सर्वोदय दर्शन मे आसानी से देखी जा सकती है। सर्वोदय दर्शन वस्तुत आधुनिक चेतना की देन नही । उसे यथार्थ मे महावीर ने प्रस्तुत किया था। उन्होने सामाजिक देन की विषमता को देखकर क्रान्ति के तीन सूत्र दिये - 1 समता, 2 शमता, 3 श्रमशीलता । समता का तात्पर्य है सभी व्यक्ति समान है। जन्म से न तो कोई ब्राह्मण है, न क्षत्रिय है न वैश्य है, न शूद्र है। मनुष्य तो जाति नाम कर्म के उदय से एक ही है । आजीविका और कर्म के भेद से अवश्य उसे चार वर्गो में विभाजित किया जा सकता है--- मनुष्यजातिरेकैव जातिकर्मोदयोदभवा । वृत्तिभेदाहितभेदाच्चतुर्विध्यामिहाश्नुते ।। जिनसेनाचार्य आदिपुराण, 38.45 शमता कर्मों के समूल विनाश से सबद्ध है। इस अवस्था को निर्वाण कहा जाता है। वैदिक संस्कृति का मूलरूप स्वर्ग तक ही सीमित था । उसमें निर्वाण का कोई स्थान ही नही था । जैनधर्म के प्रभाव से उपनिषद्काल मे उसमें निर्वाण की कल्पना ने जन्म लिया। जैनधर्म के अनुसार निर्वाण के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए है । वहा पहुंचने के लिए किसी वर्ग का विशेष में जन्म लेना आवश्यक नही । आवश्यक है, उत्तम प्रकार का चारित्र और विशुद्ध जीवन । श्रमशीलता श्रमण संस्कृति की तीसरी विशेषता है। इसका तात्पर्य है व्यक्ति का विकास उसके स्वयं के पुरुषार्थ पर निर्भर करता है, ईश्वर आदि की कृपा पर नहीं । वैदिक संस्कृति मे स्वयं का पुरुषार्थ होने के बावजदू उस पर ईश्वर का अधिकार है। ईश्वर की कृपा से ही व्यक्ति स्वर्ग और नरक जा सकता है। जैन संस्कृति में इस प्रकार के ईश्वर का कोई स्थान नहीं। वह तो कुछ भी कर्म करता है उसी का फल उसी को स्वत मिल जाता है। कर्म के कर्ता और भोक्ता के बीच
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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