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________________ अनेकान्त/32 सुर पुष्प वृष्टि करै, सब सुखकारी है। भामंडल छवि जैसे दर्पन विनोदीलाल, जैसे नाभिनंदन कू वंदना हमारी है। जिन राज तप करि निरजरा करम कीने, भयो ग्यांन केवल त्रिलोक उजियारी है। समोवसरन आनि रचना कबेर कीनी, अतिसै विराजमान च्यारीतीस भारी है। सेवत सकल इंद चंद ओर फणेन्द्र सबै, मयो जिनराज निरवान पद धारी है। मन बच क्रम कीयै कहत विनोदीलाल, जैसे नाभिनंदन कू वंदना हमारी है। नवकार मंत्र का महत्व : तीर्थकर ऋषभदेव की वंदना कई सवैयों में प्रस्तुत कर देने के पश्चात् भक्त विनोदीलाल ने नवकार मंत्र के स्मरण का महत्व प्रतिपादित किया है। 'उल्लेख' और 'उपमा' अलंकारों से विभूषित उनके दो सवैये इस प्रकार हैं संकटहरन, सिव को करनहार अति ही उदार, महादान वेसुमार हैं। महिमा अपार जैन धर्म को सिंगार, मुक्ति कामिनी को हारु सिवपंथ को करारू हैं। कल्प वृक्ष की सी डार, चिंतामनि रत्नसार, तारण तरणहारु मोहि इतवार है। मन बच क्रम कीए कहत 'विनोदी लाल', मेरे नवकार मंत्र प्रान के आधार है।। मंत्र जापै निहिचै दीजै नीर, अष्ट सिध नव निधि सब तैरे आई है। देवनि की रिद्धि वृद्धि सकल समीप आव, चक्रवर्ती को सो विभो आप तै आप बनाई है। कामदेव की सी छवि तेज ज्यौं उद्यौत रवि, चन्द्र सुदि की सी कला निति की बढाई है। कहत 'विनोदी लाल' जपो नवकार माल, जगत के सुख भुजि मोक्ष पद पाई है। पारस, कल्प वृक्ष, चित्राबेलि और कामधेनु की तुलना में नामस्मरण को अधिक फलदायक मानकर रविकारण माला 'व्यतिरेक' अनुप्रास और यमक अलंकारों के संभवत प्रयोग के साथ मोक्ष की दृष्टि से भी नामस्मरण का महत्व प्रतिपादित करते हैं काहा सुर तर काहा चित्राबेलि कामधेनु काहा, रस कूप काहा पारस के पाय तैं। काहा रस पाय और रसाइन कामधेनु काहा, कौन काज होतु तेरौ लक्ष्मी के आय ते। धन पाये पुन्य होत पुन्य कीये राज होत,
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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